तब सुलैमान के कारीगरों और हीराम के कारीगरों तथा गबाली के व्यक्तियों ने पत्थरों पर नक्काशी का काम किया। उन्होंने मन्दिर को बनाने के लिये पत्थरों और लट्ठों को तैयार किया।
मन्दिर का निर्माण वर्ष के आठवें महीने बूल माह मे पूरा हुआ। लोगों पर सुलैमान के शासन के ग्यारहवे वर्ष में यह हुआ था। मन्दिर के निर्माण में सात वर्ष लगे। मन्दिर ठीक उसी प्रकार बना था जैसा उसे बनाने की योजना थी।
कारीगरों ने दीवारों को बनाने के लिये बड़े पत्थरों का उपयोग किया। कारीगरों ने उसी स्थान पर पत्थरों को काटा जहाँ उन्होंने उन्हें जमीन से निकाला। इसलिए मन्दिर में हथौड़ी, कुल्हाड़ियों और अन्य किसी भी लोहे के औजार की खटपट नहीं हुई।
इस्राएल के लोगों ने सुलैमान द्वारा याजकों और लेवीवंशियों को दिये गए निर्देशों को न बदला, न ही उनका उल्लघंन किया। उन्होंने किसी भी निर्दश में वैसे भी परिवर्तन नहीं किये जैसे वे बहुमूल्य चीज़ों को रखने में करते थे।