वहाँ दो दरवाजे थे। हर एक दरवाजे के दो भाग थे, अत: दोनों दरवाजे मुड़कर बन्द होते थे। उन्होंने दरवाजों पर करूब (स्वर्गदूत) ताड़ के वृक्षों और फूलों के चित्रों को उकेरा। तब उन्होंने उन्हें सोने से मढ़ा।
उन्होंने इस कमरे की दीवारों को देवदारू के तख्तों से मढ़ा, दीवार का कोई भी पत्थर नहीं देखा जा सकता था। उन्होंने फूलों और कद्दू के चित्र देवदारु के तख्तों में नक्काशी की।
तब उन्होंने भीतरी आँगन बनाया। उन्होंने इस आँगन के चारों ओर दीवारें बनाईं। हर एक दीवार कटे पत्थरों की तीन पँक्तियों और देवदारू की लकड़ी की एक पंक्ति से बनाई गई।
हौज की दीवारें चार इंच मोटी थीं। तालाब के चारों ओर की किनारी एक प्याले की किनारी या फूल की पंखुड़ियों की तरह थी। तालाब की क्षमता लगभग ग्यारह हजार गैलन थी।
गाड़ी की बगल और ढाँचे पर करूब (स्वर्गदूतों), सिंहों और ताड़ के वृक्षों के चित्र काँसे में उकेरे गए थे। ये चित्र गाड़ियों पर सर्वत्र, जहाँ भी स्थान था, उकेरे गए थे और गाड़ी के चारों ओर के ढाँचे पर फूल उकेरे गए थे।
सुलैमान ने सलाईयाँ, प्याले, कढ़ाईयाँ और धूपदान बनाने के लिये शुद्ध सोने का उपयोग किया। सुलैमान ने मन्दिर के दरवाजों, सर्वाधिक पवित्र स्थान और मुख्य विशाल कक्ष के भीतरी दरवाजों को बनाने के लिये शुद्ध सोने का उपयोग किया।
रक्षकों के कमरों में चारों ओर छोटी खिड़कियाँ थी। छोटे कमरों में द्वार—स्तम्भों की ओर भीतर को खिड़कियाँ अधिक पतली हो गई थीं। प्रवेश कक्ष में भी भीतर के चारों ओर खिड़कियाँ थीं। हर एक द्वार स्तम्भ पर खजूर के वृक्ष खुदे थे।
इसकी खिड़कियाँ इसके प्रवेश कक्ष और इसकी खजूर के वृक्षों की नक्काशी की नाप वही थी जो पूर्व की ओर मुखवाले फाटक की थी। फाटक तक सात पैड़ियाँ थी। फाटक का प्रवेश कक्ष भीतर था।