मन्दिर का द्वार मण्डप तीस फुट लम्बा और पन्द्रह फुट चौड़ा था। यह द्वारमण्डप मन्दिर के ही मुख्य भाग के सामने तक फैला था। इसकी लम्बाई मन्दिर की चौड़ाई के बराबर थी।
महल के आँगन, मन्दिर के आँगन और मन्दिर के प्रवेश द्वार मण्डप के चारों ओर दीवारें थीं। वे दीवारें पत्थर की तीन पंक्तियों और देवदारु लकड़ी की एक पंक्ति से बनीं थीं।
हीराम ने इन दोनों काँसे के स्तम्भों को मन्दिर के प्रवेश द्वार पर खड़ा किया। द्वार के दक्षिण की ओर एक स्तम्भ तथा द्वार के उत्तर की ओर दूसरा स्तम्भ खड़ा किया गया। दक्षिण के स्तम्भ का नाम याकीन रखा गया। उत्तर के स्तम्भ का नाम बोआज रखा गया।
तब दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान को मन्दिर बनाने के लिये योजनाएँ दीं। वे योजनाएँ मन्दिर के चारों ओर प्रवेश—कक्ष बनाने, इसके भवन, इसके भंडार—कक्ष, इसके ऊपरी कक्ष, इसके भीतरी कक्ष और दयापीठ के स्थान के लिये थी।
वह व्यक्ति मुझे मन्दिर के प्रवेश कक्ष में लाया और उनके हर एक द्वार—स्तम्भ को नापा। यह पाँच हाथ प्रत्येक ओर था। फाटक चौदह हाथ चौड़ा था। फाटक की बगल की दीवारें तीन हाथ हर ओर थीं।
उस व्यक्ति ने उस भवन की लम्बाई को नापा जिसका सामना मन्दिर के पीछे के आँगन की ओर था तथा जिसकी दीवारें दोनों ओर थीं। यह सौ हाथ लम्बा था। बीच के कमरे के भीतरी कमरे (पवित्र स्थान) और आँगन के प्रवेश कक्ष पर चौखटें लगीं थीं।