जब एलिय्याह ने वह स्वर सुना तो उसने अपने अंगरखे से अपना मुहँ ढक लिया। तब वह गया और गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। तब एक वाणी ने उससे कहा, “एलिय्याह, यहाँ तुम क्यों हो?”
अत: राजा अहाब भोजन करने गया। उसी समय एलिय्याह कर्म्मेल पर्वत की चोटी पर चढ़ा। पर्वत की चोटी पर एलिय्याह प्रणाम करने झुका। उसने अपने सिर को अपने घुटनों के बीच में रखा।
एलिय्याह ने अपना अंगरखा उतारा, उसे तह किया और उससे पानी पर चोट की। पानी दायीं और बायीं ओर को फट गया। एलिय्याह और एलीशा ने सूखी भूमि पर चलकर नदी को पार किया।
यहोवा के चारों ओर साराप स्वर्गदूत खड़े थे। हर साराप (स्वर्गदूत) के छः छः पंख थे। इनमें से दो पंखों का प्रयोग वे अपने मुखों को ढकने के लिए किया करते थे तथा दो पंखों का प्रयोग अपने पैरों को ढकने के लिये करते थे और दो पंखों को वे उड़ने के काम में लाते थे।
मैं बहुत डर गया था। मैंने कहा, “अरे, नहीं! मैं तो नष्ट हो जाऊँगा। मैं उतना शुद्ध नहीं हूँ कि परमेश्वर से बातें करूँ और मैं ऐसे लोगों के बीच रहता हूँ जो उतने शुद्ध नहीं हैं कि परमेश्वर से बातें कर सकें। किन्तु फिर भी मैंने उस राजा, सर्वशक्तिमान यहोवा, के दर्शन कर लिये हैं।”
इन सभी बातों से योना अभी भी कुपित था। सो वह नगर के बाहर चला गया। योना एक ऐसे स्थान पर चला गया था जो नगर के पूर्वी प्रदेश के पास ही था। योना ने वहाँ अपने लिये एक पड़ाव बना लिया। फिर उसकी छाया में वहीं बैठे—बैठे वह इस बात की बाट जोहने लगा कि देखें इस नगर के साथ क्या घटता है
कुछ पर पथराव किया गया। उन्हें आरे से चीर कर दो फाँक कर दिया गया, उन्हें तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया। वे ग़रीब थे, उन्हें यातनाएँ दी गई और उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया। वे भेड़-बकरियों की खालें ओढ़े इधर-उधर भटकते रहे।