पर हम उन लोगों को नाराज़ न करें इसलिये झील पर जा और अपना काँटा फेंक और फिर जो पहली मछली पकड़ में आये उसका मुँह खोलना तुझे चार दरम का सिक्का मिलेगा। उसे लेकर मेरे और अपने लिए उन्हें दे देना।”
बल्कि हमें तो उनके पास लिख भेजना चाहिये कि: मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये। और व्यभिचार से बचे रहे। गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का माँस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।
“मैं कुछ भी करने को स्वतन्त्र हूँ।” किन्तु हर कोई बात हितकर नहीं होती। हाँ! “मैं सब कुछ करने को स्वतन्त्र हूँ।” किन्तु मैं अपने पर किसी को भी हावी नहीं होने दूँगा।
यदि दूसरे लोग तुमसे भौतिक वस्तुएँ पाने का अधिकार रखते हैं तो हमारा तो तुम पर क्या और भी अधिक अधिकार नहीं है? किन्तु हमने इस अधिकार का उपयोग नहीं किया है। बल्कि हम तो सब कुछ सहते रहे हैं ताकि हम मसीह सुसमाचार के मार्ग में कोई बाधा न डाल दें।