साक्षी के रूप में परमेश्वर की दुहाई देते हुए और अपने जीवन की शपथ लेते हुए मैं कहता हूँ कि मैं दोबारा कुरिन्थुस इसलिए नहीं आया था कि मैं तुम्हें पीड़ा से बचाना चाहता था।
तितुस और उसके साथ हमारे भाई को मैंने तुम्हारे पास भेजा था। क्या उसने तुम्हें कोई धोखा दिया? नहीं क्या हम उसी निष्कपट आत्मा से नहीं चलते रहे? क्या हम उन्हीं चरण चिन्हों पर नहीं चले?
इसलिए तुमसे दूर रहते हुए भी मैं इन बातों को तुम्हें लिख रहा हूँ ताकि जब मैं तुम्हारे बीच होऊँ तो मुझे प्रभु के द्वारा दिये गये अधिकार से तुम्हें हानि पहुँचाने के लिए नहीं बल्कि तुम्हारे आध्यात्मिक विकास के लिए तुम्हारे साथ कठोरता न बरतनी पड़े।
जब दूसरी बार मैं तुम्हारे साथ था, मैंने तुम्हें चेतावनी दी थी और अब जब मैं तुमसे दूर हूँ, मैं तुम्हें फिर चेतावनी देता हूँ कि यदि मैं फिर तुम्हारे पास आया तो जिन्होंने पाप किये हैं और जो पाप कर रहे हैं उन्हें और शेष दूसरे लोगों को भी नहीं छोड़ूँगा।
यही बात तो मैंने तुम्हें लिखी है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो जिनसे मुझे आनन्द मिलना चाहिए, उनके द्वारा मुझे दुःख न पहुँचाया जाये। क्योंकि तुम सब में मेरा यह विश्वास रहा है कि मेरी प्रसन्नता में ही तुम सब प्रसन्न होगे।
हे भाईयों, तुममें से यदि कोई व्यक्ति कोई पाप करते पकड़ा जाए तो तुम आध्यात्मिक जनों को चाहिये कि नम्रता के साथ उसे धर्म के मार्ग पर वापस लाने में सहायता करो। और स्वयं अपने लिये भी सावधानी बरतो कि कहीं तुम स्वयं भी किसी परीक्षा में न पड़ जाओ।
यद्यपि हम मसीह के प्रेरितों के रूप में अपना अधिकार जता सकते थे किन्तु हम तुम्हारे बीच वैसे ही नम्रता के साथ रहे जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिला कर उसका पालन-पोषण करती है।
किन्तु स्वर्ग से आने वाला ज्ञान सबसे पहले तो पवित्र होता है, फिर शांतिपूर्ण, सहनशील, सहज-प्रसन्न, करुणापूर्ण होता है। और उससे उत्तम कर्मों की फ़सल उपजती है। वह पक्षपात-रहित और सच्चा भी होता है।