देखो, तुम्हारे पास आने को अब मैं तीसरी बार तैयार हूँ। पर मैं तुम पर किसी तरह का बोझ नहीं बनूँगा। मुझे तुम्हारी सम्पत्तियों की नहीं तुम्हारी चाहत है। क्योंकि बच्चों को अपने माता-पिता के लिये कोई बचत करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि अपने बच्चों के लिये माता-पिता को ही बचत करनी होती है।
अब तुम क्या यह सोच रहे हो कि एक लम्बे समय से हम तुम्हारे सामने अपना पक्ष रख रहे हैं। किन्तु हम तो परमेश्वर के सामने मसीह के अनुयायी के रूप में बोल रहे हैं। मेरे प्रिय मित्रो! हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह तुम्हें आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए है।
क्या इससे तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं मनुष्यों का समर्थन चाहता हूँ? या यह कि मुझे परमेश्वर का समर्थन मिले? अथवा क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करने का जतन कर रहा हूँ? यदि मैं मनुष्यों को प्रसन्न करता तो मैं मसीह के सेवक का सा नहीं होता।
वे विधर्मियों को सुसमाचार का उपदेश देने में बाधा खड़ी करते हैं कि कहीं उन लोगों का उद्धार न हो जाये। इन बातों में वे सदा अपने पापों का घड़ा भरते रहते हैं और अन्ततः अब तो परमेश्वर का प्रकोप उन पर पूरी तरह से आ पड़ा है।