तो क्या हमारा विश्वास व्यवस्था को व्यर्थ ठहराता है? नहीं! बिलकुल नहीं! इसके विपरीत अपने विश्वास के द्वारा हम व्यवस्था को स्थिर करते हैं.
इब्रानियों 7:18 - सरल हिन्दी बाइबल एक ओर पहली आज्ञा का बहिष्कार उसकी दुर्बलता तथा निष्फलता के कारण कर दिया गया. पवित्र बाइबल पहला नियम इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह निर्बल और व्यर्थ था। Hindi Holy Bible निदान, पहिली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) शक्तिहीन और निष्फल होने के कारण पुराना आदेश रद्द कर दिया गया है, पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण लोप हो गई नवीन हिंदी बाइबल जहाँ एक ओर पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण रद्द हो गई— इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। |
तो क्या हमारा विश्वास व्यवस्था को व्यर्थ ठहराता है? नहीं! बिलकुल नहीं! इसके विपरीत अपने विश्वास के द्वारा हम व्यवस्था को स्थिर करते हैं.
वह काम, जो व्यवस्था मनुष्य के पाप के स्वभाव के कारण पूरा करने में असफल साबित हुई, परमेश्वर ने पूरा कर दिया—उन्होंने निज पुत्र को ही पापमय मनुष्य के समान बनाकर पापबलि के रूप में भेज दिया. इस प्रकार उन्होंने पापमय शरीर में ही पाप को दंडित किया
प्रिय भाई बहनो, मैं सामान्य जीवन से उदाहरण दे रहा हूं. एक मानवीय वाचा की पुष्टि के बाद उसे न तो कोई अलग करता है और न ही उसमें कुछ जोड़ता है.
मेरे कहने का मतलब यह है: परमेश्वर ने अब्राहाम से एक वाचा स्थापित की तथा उसे पूरा करने की प्रतिज्ञा भी की. चार सौ तीस वर्ष बाद दी गई व्यवस्था न तो परमेश्वर की वाचा को मिटा सकती है और न परमेश्वर की प्रतिज्ञा को.
तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विपरीत है? बिलकुल नहीं! यदि कोई ऐसी व्यवस्था दी गई होती, जो जीवन प्रदान कर सकती थी, तब निश्चयतः उस व्यवस्था के पालन करने पर धार्मिकता प्राप्त हो जाती.
मुझे यह बताओ: तुम, जो व्यवस्था के अधीन रहना चाहते हो, क्या तुम वास्तव में व्यवस्था का पालन नहीं करते?
किंतु अब, जब तुमने परमेश्वर को जान लिया है, परंतु यह कहें कि परमेश्वर द्वारा जान लिये गए हो, तो फिर तुम कमजोर तथा दयनीय आदि शिक्षाओं का दास बनने के लिए क्यों लौट रहे हो? क्या तुम्हें दोबारा उन्हीं का दास बनने की लालसा है?
शारीरिक व्यायाम सिर्फ थोड़े लाभ का है जबकि परमेश्वर भक्ति का लाभ सब बातों में है क्योंकि वह जीवन का आश्वासन देती है—इस समय और आनेवाले जीवन, दोनों का.
बदली हुई विचित्र प्रकार की शिक्षाओं के बहाव में न बह जाना. हृदय के लिए सही है कि वह अनुग्रह द्वारा दृढ़ किया जाए न कि खाने की वस्तुओं द्वारा. खान-पान संबंधी प्रथाओं द्वारा किसी का भला नहीं हुआ है.
क्योंकि व्यवस्था सिद्धता की स्थिति लाने में असफल रहीं—दूसरी ओर अब एक उत्तम आशा का उदय हो रहा है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में पहुंचते हैं.