जब आराधक प्रभु की स्तुति और धन्यवाद में गीत गाते थे, तब उनके स्वर में स्वर मिलाकर ये गायक भी गाते और तुरही बजाने वाले पुरोहित तुरही बजाते थे। इस प्रकार गीत और संगीत में ताल-मेल बैठाना गायकों और इन पुरोहितों का काम था। अत: जब पुरोहित पवित्र स्थान से बाहर निकले, और जब तुरही और झांझ तथा अन्य वाद्य-यन्त्रों पर प्रभु की स्तुति में यह गीत गूंजा : ‘क्योंकि प्रभु भला है, और उसकी करुणा सदा की है,’ तब भवन, प्रभु का भवन एक मेघ से भर गया।
जब वे चलते थे तब उनके पंखों की आवाज ऐसी सुनाई पड़ती थी मानो सागर का गर्जन हो, अथवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर का स्वर हो या सेना का कोलाहल हो। जब जीवधारी रुककर खड़े होते थे तब वे अपने पंख नीचे कर लेते थे।
बाहरी आंगन तक करूबों के पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देने लगी। जैसी आवाज सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बोलने पर होती है, वैसी ही करूबों के पंखों की फड़ाफड़ाहट थी।
की दीवारों पर चारों ओर तख्ते जड़े हुए थे। तीनों में खिड़कियां थीं, जो चौखटों के नीचे की ओर क्रमश: संकरी होती गई थीं। सम्पूर्ण मन्दिर पर, ड्योढ़ी से छज्जे तक, फर्श से खिड़कियों तक, और खिड़कियों के आसपास, दरवाजे के ऊपर की जगह, अन्तर्गृह में और बाहर की ओर सब जगह, तख्ते जड़े थे। खिड़कियां ढकी हुई थीं। अन्तर्गृह तथा मध्यभाग की दीवारों पर चारों ओर
इसके पश्चात् वह मुझे उत्तरी फाटक से मन्दिर के सम्मुख ले गया। तब मैंने देखा कि प्रभु का भवन प्रभु के तेज से भर गया है। मैं श्रद्धा और भक्ति से भूमि पर मुंह के बल गिरा।
मैंने प्रभु को वेदी के समीप खड़े हुए देखा। उसने आदेश दिया, ‘खम्भों के शीर्ष पर प्रहार कर ताकि ड्योढ़ियाँ हिलने लगें; तू खम्भों को ध्वस्त कर; उन्हें लोगों के सिर पर गिरा। जो उससे बच जाएंगे, मैं उनको तलवार से मौत के घाट उतारूंगा। उनमें एक भी व्यक्ति नहीं बचेगा। वह प्राण बचाकर भाग न सकेगा।
तब स्वर्ग में परमेश्वर का मन्दिर खुल गया और मन्दिर में परमेश्वर के विधान की मंजूषा दिखाई पड़ी। बिजलियाँ, वाणियाँ एवं मेघगर्जन उत्पन्न हुए, भूकम्प हुआ और भारी ओला-वृष्टि हुई।
परमेश्वर की महिमा और उसके सामर्थ्य के कारण मन्दिर धूएँ से भर गया था और कोई तब तक मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक सात स्वर्गदूतों की सात विपत्तियाँ पूरी न हो जायें।