यदि सचमुच किसी को बहुत भूख लगी हो तो उसे घर पर ही खा लेना चाहिये ताकि तुम्हारा एकत्र होना तुम्हारे लिये दण्ड का कारण न बने। अस्तु; दूसरी बातों को जब मैं आऊँगा, तभी सुलझाऊँगा।
याकूब 5:12 - पवित्र बाइबल हे मेरे भाईयों, सबसे बड़ी बात यह है कि स्वर्ग की अथवा धरती की या किसी भी प्रकार की कसमें खाना छोड़ो। तुम्हारी “हाँ”, हाँ होनी चाहिए, और “ना” ना होनी चाहिए। ताकि तुम पर परमेश्वर का दण्ड न पड़े। Hindi Holy Bible पर हे मेरे भाइयों, सब से श्रेष्ठ बात यह है, कि शपथ न खाना; न स्वर्ग की न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की, पर तुम्हारी बातचीत हां की हां, और नहीं की नहीं हो, कि तुम दण्ड के योग्य न ठहरो॥ पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) मेरे भाइयो और बहिनो! सब से बड़ी बात यह है कि आप शपथ नहीं खायें − न तो स्वर्ग की, न पृथ्वी की और न किसी अन्य वस्तु की। आपकी बात इतनी हो : हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। कहीं ऐसा न हो कि आप दण्ड के योग्य हो जायें। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) पर हे मेरे भाइयो, सबसे श्रेष्ठ बात यह है कि शपथ न खाना, न स्वर्ग की, न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की; पर तुम्हारी बातचीत हाँ की हाँ, और नहीं की नहीं हो, कि तुम दण्ड के योग्य न ठहरो। नवीन हिंदी बाइबल हे मेरे भाइयो, सब से बड़ी बात यह है कि शपथ न खाना, न स्वर्ग की, न पृथ्वी की और न ही किसी अन्य वस्तु की; परंतु तुम्हारी “हाँ” की “हाँ” और “न” की “न” हो, ताकि तुम दंड के योग्य न ठहरो। सरल हिन्दी बाइबल प्रिय भाई बहनो, इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि तुम शपथ ही न खाओ, न तो स्वर्ग की और न ही पृथ्वी की और न ही कोई अन्य शपथ. इसके विपरीत तुम्हारी “हां” का मतलब हां हो तथा “न” का न, जिससे तुम दंड के भागी न बनो. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 पर हे मेरे भाइयों, सबसे श्रेष्ठ बात यह है, कि शपथ न खाना; न स्वर्ग की न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की, पर तुम्हारी बातचीत हाँ की हाँ, और नहीं की नहीं हो, कि तुम दण्ड के योग्य न ठहरो। |
यदि सचमुच किसी को बहुत भूख लगी हो तो उसे घर पर ही खा लेना चाहिये ताकि तुम्हारा एकत्र होना तुम्हारे लिये दण्ड का कारण न बने। अस्तु; दूसरी बातों को जब मैं आऊँगा, तभी सुलझाऊँगा।
हे मेरे प्रिय भाईयों, याद रखो, हर किसी को तत्परता के साथ सुनना चाहिए, बोलने में शीघ्रता मत करो, क्रोध करने में उतावली मत बरतो।
और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दूसरे के प्रति निरन्तर प्रेम बनाये रखो क्योंकि प्रेम से अनगिनत पापों का निवारण होता है।
हे मेरे प्रिय मित्र, मैं प्रार्थना करता हूँ कि तू जैसे आध्यात्मिक रूप से उन्नति कर रहा है, वैसे ही सब प्रकार से उन्नति करता रह और स्वास्थ्य का आनन्द उठाता रह।