चरवाहा और उसकी भेड़ें1 “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : जो फाटक से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, बल्कि दूसरे रास्ते से चढ़ कर आता है, वह चोर और डाकू है। 2 जो फाटक से प्रवेश करता है, वही भेड़ों का चरवाहा है 3 और उसके लिए द्वारपाल फाटक खोल देता है। भेड़ें उसकी आवाज पहचानती हैं। वह नाम ले-ले कर अपनी भेड़ों को बुलाता और बाहर ले जाता है। 4 अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल लेने के बाद वह उनके आगे-आगे चलता है और भेड़ें उसके पीछे-पीछे आती हैं, क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं। 5 वे अपरिचित के पीछे-पीछे नहीं चलेंगी, बल्कि उससे दूर भागेंगी; क्योंकि वे अपरिचितों की आवाज नहीं पहचानतीं।” 6 येशु ने लोगों को यह दृष्टान्त सुनाया, किन्तु उन्होंने नहीं समझा कि वह उनसे क्या कह रहे हैं। मैं भेड़शाला का द्वार हूँ7 इसलिए येशु ने फिर उनसे कहा, “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ : भेड़शाला का द्वार मैं हूँ। 8 जो मुझ से पहले आए, वे सब चोर और डाकू हैं; किन्तु भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी। 9 मैं ही द्वार हूँ। यदि कोई मुझ से हो कर प्रवेश करेगा तो उसे मुक्ति प्राप्त होगी। वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और उसे चरागाह मिलेगा। 10 “चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करें− बल्कि प्रचुरता से जीवन प्राप्त करें। अच्छा चरवाहा मैं हूँ11 “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिए अपना प्राण अर्पित करता है। 12 मजदूर, जो न चरवाहा है और न भेड़ों का मालिक, भेड़िये को आते देख भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तितर-बितर कर देता है। 13 मजदूर भाग जाता है, क्योंकि वह तो मजदूर है और उसे भेड़ों की कोई चिन्ता नहीं। 14-15 “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। जिस तरह पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ, उसी तरह मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। मैं भेड़ों के लिए अपना प्राण अर्पित करता हूँ। 16 मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी लाना है। वे मेरी आवाज सुनेंगी। तब एक ही झुण्ड होगा और एक ही चरवाहा। 17 “पिता मुझ से इसलिए प्रेम करता है कि मैं अपना प्राण अर्पित करता हूँ ताकि मैं उसे फिर प्राप्त करूँ। 18 कोई मुझ से मेरा प्राण नहीं छीन सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना प्राण अर्पित करने और उसे फिर प्राप्त करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता की ओर से यह आदेश मिला है।” यरूशलेम के यहूदियों में मतभेद19 येशु के इन वचनों के कारण उन यहूदियों में फिर मतभेद हो गया। 20 बहुत-से लोग कहते थे, “उसमें भूत है। वह प्रलाप करता है। तुम उसकी क्यों सुनते हो?” 21 कुछ लोग कहते थे, “ये वचन भूतग्रस्त मनुष्य के नहीं हैं। क्या भूत अन्धों की आँखें खोल सकता है?” मन्दिर का प्रतिष्ठान-पर्व22 उन दिनों यरूशलेम में मन्दिर का प्रतिष्ठान-पर्व मनाया जा रहा था। शीत ऋतु का समय था। 23 येशु मन्दिर में सुलेमान के मण्डप में टहल रहे थे। 24 यहूदी धर्मगुरुओं ने उन्हें घेर लिया और कहा, “आप हमें कब तक असमंजस में रखे रहेंगे? यदि आप मसीह हैं, तो हमें स्पष्ट शब्दों में बता दीजिए।” 25 येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने तुम लोगों को बताया और तुम विश्वास नहीं करते। जो कार्य मैं अपने पिता के नाम पर करता हूँ, वे ही मेरे विषय में साक्षी देते हैं। 26 किन्तु तुम विश्वास नहीं करते, क्योंकि तुम मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं। 28 मैं उन्हें शाश्वत जीवन प्रदान करता हूँ। वे कभी नष्ट नहीं होंगी और उन्हें मेरे हाथ से कोई नहीं छीन सकेगा। 29 जो कुछ मेरे पिता ने मुझे दिया है, वह सब से महान् है और उसे पिता के हाथ से कोई नहीं छीन सकता। 30 मैं और पिता एक हैं।” 31 धर्मगुरुओं ने येशु को मार डालने के लिए फिर पत्थर उठाए। 32 येशु ने उन से कहा, “मैंने अपने पिता की ओर से तुम लोगों के सामने बहुत-से अच्छे कार्य किये हैं। उन में किस कार्य के लिए मुझे पत्थरों से मार डालना चाहते हो?” 33 धर्मगुरुओं ने उत्तर दिया, “किसी अच्छे कार्य के लिए नहीं, बल्कि ईश-निन्दा के लिए हम तुम को पत्थरों से मार डालना चाहते हैं; क्योंकि तुम मनुष्य हो कर अपने को परमेश्वर मानते हो।” 34 येशु ने कहा, “क्या तुम लोगों की व्यवस्था में यह नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा : तुम ईश्वर हो’? 35 जिन को परमेश्वर का सन्देश दिया गया था, यदि व्यवस्था ने उन को ईश्वर कहा − और धर्मग्रन्थ की बात टल नहीं सकती − 36 तो जिसे पिता ने पवित्र ठहरा कर संसार में भेजा है, उससे तुम लोग यह कैसे कहते हो, ‘तुम ईश-निन्दा करते हो’; क्योंकि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’? 37 “यदि मैं अपने पिता के कार्य नहीं करता, तो मुझ पर विश्वास न करो। 38 किन्तु यदि मैं उन्हें करता हूँ, तो मुझ पर विश्वास नहीं करने पर भी तुम कार्यों पर ही विश्वास करो, जिससे तुम यह जान जाओ और समझ लो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।” 39 इस पर उन्होंने फिर येशु को गिरफ्तार करने का प्रयत्न किया, परन्तु वह उनके हाथ से निकल गये। यर्दन नदी के उस पार40 येशु यर्दन नदी के पार उस जगह लौट गये, जहाँ पहले योहन बपतिस्मा दिया करते थे, और वह वहीं रहे। 41 बहुत लोग उनके पास आए। वे कहते थे, “योहन ने तो कोई आश्चर्यपूर्ण चिह्न नहीं दिखाया, परन्तु उन्होंने इनके विषय में जो कुछ कहा, वह सब सच निकला।” 42 और वहाँ बहुतों ने येशु पर विश्वास किया। |
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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