रानी एस्तर का निवेदन1 उसी दिन सम्राट क्षयर्ष ने यहूदी कौम के शत्रु हामान की जागीर रानी एस्तर को दे दी। एस्तर ने सम्राट को बता दिया कि मोरदकय उसका चचेरा भाई है। अत: वह सम्राट का उच्चाधिकारी नियुक्त हो गया। 2 सम्राट ने अपनी अंगुली से मुहर अंकित करने वाली अंगूठी उतारी, और मोरदकय को दे दी। सम्राट ने यह अंगूठी हामान से वापस ले ली थी। एस्तर ने मोरदकय को हामान की जागीर का प्रबन्धक नियुक्त किया। 3 एस्तर सम्राट के पास पुन: गई। वह उसके पैरों पर गिर पड़ी, और आंसू बहाने लगी। उसने सम्राट से निवेदन किया कि अगागी वंश के हामान द्वारा सोचा गया अनिष्ट का विचार, यहूदियों के विरुद्ध रची गई उसकी योजना रद्द कर दी जाए। 4 सम्राट ने एस्तर की ओर अपना स्वर्ण राजदण्ड बढ़ाया। 5 एस्तर उठी, और वह सम्राट के सम्मुख खड़ी हुई। उसने सम्राट से कहा, ‘महाराज, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, और यदि आप उचित समझें, और इस प्रस्ताव को ठीक समझें, और यदि मैं आपको अच्छी लगती हूँ तो जो आदेश-पत्र यहूदियों का विनाश करने के लिए अगागी वंशीय हामान बेन-हम्मदाता ने महाराज के लिए लिखे थे, उन पत्रों को रद्द करने के लिए महाराज नई आज्ञा प्रसारित करें। 6 मैं अपनी कौम पर आनेवाली विपत्ति को कैसे देख सकूंगी? मैं अपने नाते-रिश्तेदारों का सर्वनाश कैसे सहन कर सकूंगी?’ 7 सम्राट क्षयर्ष ने रानी एस्तर और यहूदी मोरदकय से कहा, ‘देखो, मैंने हामान की जागीर एस्तर को दे दी है। मेरे सेवकों ने हामान को फांसी-स्तम्भ पर भी लटका दिया, क्योंकि वह यहूदी कौम पर हाथ उठाना चाहता था। 8 अब तुम यह कार्य करो : तुम यहूदियों के विषय में जो उचित समझते हो, वह मेरे नाम से लिखो। लिखने के बाद पत्र पर मेरी अंगूठी से मुहर लगा देना; क्योंकि जो आदेश-पत्र सम्राट के नाम से लिखा जाता है और जिस पर सम्राट की अंगूठी की मुहर लगाई जाती है, वह कभी रद्द नहीं हो सकता।’ 9 तीसरे महीने अर्थात् सीवान महीने की तेईसवीं तारीख थी। उसी दिन सम्राट के सचिव बुलाए गए। उन्होंने मोरदकय के निर्देश के अनुसार यहूदियों के सम्बन्ध में भारतवर्ष से इथियोपिआ देश तक − एक सौ सत्ताईस प्रदेशों के शासकों, क्षत्रपों और राज्यपालों को राजाज्ञा लिखी। यह राजाज्ञा प्रत्येक राष्ट्र की भाषा तथा उसकी लिपि में लिखी गई। इनके अतिरिक्त यह राजाज्ञा यहूदियों की भाषा और लिपि में भी लिखी गई। 10 यह राजाज्ञा सम्राट क्षयर्ष के नाम से लिखी गई, और उस पर सम्राट क्षयर्ष की अंगूठी की मुहर लगाई गई। तत्पश्चात् राजाज्ञा के पत्रों को राजकीय अश्वशाला के तेज घोड़ों पर सवार हरकारों द्वारा भेज दिया गया। ये उत्तम नस्ल के घोड़े सम्राट की सेवा में थे। 11 इन पत्रों के द्वारा सम्राट ने सब नगरों में रहने वाले यहूदियों को यह अनुमति दी कि वे अपने प्राणों की रक्षा के लिए परस्पर एकत्र होकर सुरक्षा-दल बना सकते हैं। यदि कोई जाति अथवा प्रदेश की सशस्त्र-सेना उन पर आक्रमण करेगी तो वे बच्चों और स्त्रियों सहित उनको नष्ट कर सकते हैं, उनका वध और सर्वनाश कर सकते हैं, और उनकी धन-सम्पत्ति लूट सकते हैं। 12 यह अनुमति सम्राट क्षयर्ष के समस्त साम्राज्य में केवल एक दिन के लिए दी गई थी: अदार नामक बारहवें महीने के तेरहवें दिन के लिए। 13 इस राजाज्ञा-पत्र की प्रतिलिपियाँ सब प्रदेशों में भेजी गईं, और सब लोगों को सूचित किया गया कि यहूदी उस दिन अपने शत्रुओं से बदला लेने के लिए तैयार रहें। 14 सम्राट का आदेश था कि यह राजाज्ञा जल्दी से जल्दी सब प्रदेशों में पहुँचाई जाए। अत: हरकारे राजकीय तेज घोड़ों पर सवार हुए और द्रुतगति से चले गए। ये घोड़े सम्राट की सेवा में थे। राजधानी शूशन में राजाज्ञा घोषित की गई। महामंत्री मोरदकय15 मोरदकय सम्राट के दरबार से बाहर निकला। वह नीले और सफेद रंग की राजकीय पोशाक पहिने हुए था। उसके सिर पर सोने का बड़ा मुकुट था। वह महीन और बैंजनी रंग की चादर ओढ़े हुए था। शूशन नगर के नागरिक उसको देखकर जयजयकार करने लगे। 16 यहूदी लोगों पर नई ज्योति का उदय हुआ। वे हर्षित और प्रसन्न हुए। उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ। 17 सम्राट क्षयर्ष के अधीन हरएक प्रदेश और प्रत्येक नगर में जहाँ-जहाँ राजाज्ञा और आदेश-पत्र पहुंचे, यहूदी आनन्द और उल्लास से भर गए। उन्होंने छुट्टी मनाई और खाना-पीना किया। यहूदियों का डर अन्य जातियों पर छा गया, अत: देश के अनेक लोगों ने स्वयं को यहूदी घोषित कर दिया। |
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