विनती और भरोसादाऊद की प्रार्थना। 1 हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं असहाय और दरिद्र हूँ। 2 मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं तेरा भक्त हूँ। तू मेरा परमेश्वर है, इसलिए अपने दास का, जो तुझ पर भरोसा रखता है, उद्धार कर। 3 हे प्रभु, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं दिन भर तुझे पुकारता रहता हूँ। 4 अपने दास के मन को आनंदित कर, क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ओर लगाता हूँ। 5 हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सब के लिए तू अति करुणामय है। 6 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना पर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। 7 संकट के दिन मैं तुझे पुकारूँगा, क्योंकि तू मुझे उत्तर देता है। 8 हे प्रभु, देवताओं में तेरे तुल्य कोई भी नहीं, और न ही किसी के कार्य तेरे जैसे हैं। 9 हे प्रभु, तूने जितनी जातियों को बनाया है, वे सब आकर तेरे सामने दंडवत् करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी। 10 क्योंकि तू महान और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है। 11 हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे दिखा कि मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूँ; मुझे स्थिर मन दे कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ। 12 हे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर, मैं अपने संपूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूँगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूँगा। 13 क्योंकि मुझ पर तेरी बड़ी करुणा हुई है; तूने मेरे प्राण को अधोलोक के गड्ढे में जाने से बचा लिया है। 14 हे परमेश्वर, अभिमानी लोग तो मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं, और निर्दयी मनुष्यों का झुंड मेरे प्राण के पीछे पड़ा है। वे तुझ पर ध्यान नहीं देते। 15 परंतु हे प्रभु, तू दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर है। तू क्रोध करने में धीमा तथा करुणा और सच्चाई से परिपूर्ण है। 16 मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर। अपने दास को अपना बल दे, और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर। 17 मुझे अपनी भलाई का कोई चिह्न दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी लज्जित हों; क्योंकि हे यहोवा, तूने स्वयं मेरी सहायता की और मुझे शांति दी है। |