चट्टान मैं के बीज बे हैं, कि जब बे सुनथैं, तौ खुसी से बचन कै अपनाथैं, पर जड़ ना पकड़न से बे थोड़ी देर ले बिस्वास रखथैं, जब परिक्छा को समय आथैं, तौ बे बहक जाथैं।
“एक बार कि बात रहै, एक आदमी रहै, जो कि बौ बीज बोन के ताहीं निकरो रहै, जब बौ खेत मैं बीज बोत रहै, बामै से कुछ रहामैं गिरो, जो पाँव से कुचल गौ, और बाकै आसमान के पक्छी चुग लईं।