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صفن یاہ 3:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 उस सरकश, नापाक और ज़ालिम शहर पर अफ़सोस जो यरूशलम कहलाता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 افسوس اُس سرکش، ظالِم اَور ناپاک شہر پر،

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کِتابِ مُقادّس

1 اُس سرکش و ناپاک و ظالِم شہر پر افسوس!

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 اُس سرکش، ناپاک اور ظالم شہر پر افسوس جو یروشلم کہلاتا ہے۔

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صفن یاہ 3:1
17 حوالہ جات  

रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “दरख़्तों को काटो, मिट्टी के ढेरों से यरूशलम का घेराव करो! शहर को सज़ा देनी है, क्योंकि उसमें ज़ुल्म ही ज़ुल्म पाया जाता है।


हम मानते हैं कि रब से बेवफ़ा रहे बल्कि उसका इनकार भी किया है। हमने अपना मुँह अपने ख़ुदा से फेरकर ज़ुल्म और धोके की बातें फैलाई हैं। हमारे दिलों में झूट का बीज बढ़ते बढ़ते मुँह में से निकला।


जवाब में इसराईल का क़ुद्दूस फ़रमाता है, “तुमने यह कलाम रद्द करके ज़ुल्म और चालाकी पर भरोसा बल्कि पूरा एतमाद किया है।


रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “मैं तुम्हारी अदालत करने के लिए तुम्हारे पास आऊँगा। जल्द ही मैं उनके ख़िलाफ़ गवाही दूँगा जो मेरा ख़ौफ़ नहीं मानते, जो जादूगर और ज़िनाकार हैं, जो झूटी क़सम खाते, मज़दूरों का हक़ मारते, बेवाओं और यतीमों पर ज़ुल्म करते और अजनबियों का हक़ मारते हैं।


बेवाओं, यतीमों, अजनबियों और ग़रीबों पर ज़ुल्म मत करना। अपने दिल में एक दूसरे के ख़िलाफ़ बुरे मनसूबे न बान्धो।’


तेरे बाशिंदे अपने माँ-बाप को हक़ीर जानते हैं। वह परदेसी पर सख़्ती करके यतीमों और बेवाओं पर ज़ुल्म करते हैं।


जब वह किसी खेत या मकान के लालच में आ जाते हैं तो उसे छीन लेते हैं। वह लोगों पर ज़ुल्म करके उनके घर और मौरूसी मिलकियत उनसे लूट लेते हैं।


लेकिन तू फ़रक़ है। तेरी आँखें और दिल नाजायज़ नफ़ा कमाने पर तुले रहते हैं। न तू बेक़ुसूर को क़त्ल करने से, न ज़ुल्म करने या जबरन कुछ लेने से झिजकता है।”


सुनो, इसराईली क़ौम अंगूर का बाग़ है जिसका मालिक रब्बुल-अफ़वाज है। यहूदाह के लोग उसके लगाए हुए पौदे हैं जिनसे वह लुत्फ़अंदोज़ होना चाहता है। वह उम्मीद रखता था कि इनसाफ़ की फ़सल पैदा होगी, लेकिन अफ़सोस! उन्होंने ग़ैरक़ानूनी हरकतें कीं। रास्ती की तवक़्क़ो थी, लेकिन मज़लूमों की चीख़ें ही सुनाई दीं।


वह उसका पोटा और जो उसमें है दूर करके क़ुरबानगाह की मशरिक़ी सिम्त में फेंक दे, वहाँ जहाँ राख फेंकी जाती है।


ऐ कोहे-सामरिया की मोटी-ताज़ी गायो, सुनो मेरी बात! तुम ग़रीबों पर ज़ुल्म करती और ज़रूरतमंदों को कुचल देती, तुम अपने शौहरों को कहती हो, “जाकर मै ले आओ, हम और पीना चाहती हैं।”


अशदूद और मिसर के महलों को इत्तला दो, “सामरिया के पहाड़ों पर जमा होकर उस पर नज़र डालो जो कुछ शहर में हो रहा है। कितनी बड़ी हलचल मच गई है, कितना ज़ुल्म हो रहा है।”


तब तुझे इसका अज्र मिलेगा कि तू क़ौमों के पीछे पड़कर ज़िना करती रही, कि तूने उनके बुतों की पूजा करके अपने आपको नापाक कर दिया है।


मुल्क के आम लोग भी एक दूसरे का इस्तेह्साल करते हैं। वह डकैत बनकर ग़रीबों और ज़रूरतमंदों पर ज़ुल्म करते और परदेसियों से बदसुलूकी करके उनका हक़ मारते हैं।


लेकिन अफ़सोस, इस क़ौम का दिल ज़िद्दी और सरकश है। यह लोग सहीह राह से हटकर अपनी ही राहों पर चल पड़े हैं।


जिस तरह कुएँ से ताज़ा पानी निकलता रहता है उसी तरह यरूशलम की बदी भी ताज़ा ताज़ा उससे निकलती रहती है। ज़ुल्मो-तशद्दुद की आवाज़ें उसमें गूँजती रहती हैं, उस की बीमार हालत और ज़ख़म लगातार मेरे सामने रहते हैं।


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