तुम कहते हो, “नए चाँद की ईद कब गुज़र जाएगी, सबत का दिन कब ख़त्म है ताकि हम अनाज के गोदाम खोलकर ग़ल्ला बेच सकें? तब हम पैमाइश के बरतन छोटे और तराज़ू के बाट हलके बनाएँगे, साथ साथ सौदे का भाव बढ़ाएँगे। हम फ़रोख़्त करते वक़्त अनाज के साथ उसका भूसा भी मिलाएँगे।” अपने नाजायज़ तरीक़ों से तुम थोड़े पैसों में बल्कि एक जोड़ी जूतों के एवज़ ग़रीबों को ख़रीदते हो।
