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رومیوں 9:20 - किताबे-मुक़द्दस

20 यह न कहें। आप इनसान होते हुए कौन हैं कि अल्लाह के साथ बहस-मुबाहसा करें? क्या जिसको तश्कील दिया गया है वह तश्कील देनेवाले से कहता है, “तूने मुझे इस तरह क्यों बना दिया?”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

20 لیکن اَے اِنسان! تُم کِس مُنہ سے خُدا کو جَواب دیتے ہو؟ ”کیا بنائی ہویٔی شَے اَپنے بنانے والے سے کہہ سکتی ہے کہ تُم نے مُجھے اَیسا کیوں بنایا؟“

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کِتابِ مُقادّس

20 اَے اِنسان بھلا تُو کَون ہے جو خُدا کے سامنے جواب دیتا ہے؟ کیا بنی ہُوئی چِیز بنانے والے سے کہہ سکتی ہے کہ تُو نے مُجھے کیوں اَیسا بنایا؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

20 یہ نہ کہیں۔ آپ انسان ہوتے ہوئے کون ہیں کہ اللہ کے ساتھ بحث مباحثہ کریں؟ کیا جس کو تشکیل دیا گیا ہے وہ تشکیل دینے والے سے کہتا ہے، ”تُو نے مجھے اِس طرح کیوں بنا دیا؟“

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رومیوں 9:20
30 حوالہ جات  

तुम्हारी कजरवी पर लानत! क्या कुम्हार को उसके गारे के बराबर समझा जाता है? क्या बनी हुई चीज़ बनानेवाले के बारे में कहती है, “उसने मुझे नहीं बनाया”? या क्या जिसको तश्कील दिया गया है वह तश्कील देनेवाले के बारे में कहता है, “वह कुछ नहीं समझता”? हरगिज़ नहीं!


ऐ रब, ताहम तू ही हमारा बाप, हमारा कुम्हार है। हम सब मिट्टी ही हैं जिसे तेरे हाथ ने तश्कील दिया है।


आप उससे झगड़कर क्यों कहते हैं, ‘वह मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं देता’?


“क्या मलामत करनेवाला अदालत में क़ादिरे-मुतलक़ से झगड़ना चाहता है? अल्लाह की सरज़निश करनेवाला उसे जवाब दे!”


क्या मेरा हक़ नहीं कि मैं जैसा चाहूँ अपने पैसे ख़र्च करूँ? या क्या तू इसलिए हसद करता है कि मैं फ़ैयाज़दिल हूँ?’


क्या तुम्हारी लफ़्फ़ाज़ी कभी ख़त्म नहीं होगी? तुझे क्या चीज़ बेचैन कर रही है कि तू मुझे जवाब देने पर मजबूर है?


यह लोग आपस में झगड़ने की वजह से हमेशा कुढ़ते रहते हैं। उनके ज़हन बिगड़ गए हैं और सच्चाई उनसे छीन ली गई है। हाँ, यह समझते हैं कि ख़ुदातरस ज़िंदगी गुज़ारने से माली नफ़ा हासिल किया जा सकता है।


अब दानिशमंद शख़्स कहाँ है? आलिम कहाँ है? इस जहान का मुनाज़रे का माहिर कहाँ है? क्या अल्लाह ने दुनिया की हिकमतो-दानाई को बेवुक़ूफ़ी साबित नहीं किया?


क्या तू वाक़ई मेरा इनसाफ़ मनसूख़ करके मुझे मुजरिम ठहराना चाहता है ताकि ख़ुद रास्तबाज़ ठहरे?


किसने मुक़र्रर किया कि उसे किस राह पर चलना है? कौन कह सकता है, ‘तूने ग़लत काम किया’? कोई नहीं!


होश में आएँ! क्या आप नहीं समझते कि नेक आमाल के बग़ैर ईमान बेकार है?


ग़ुलामों को कह देना कि वह हर लिहाज़ से अपने मालिकों के ताबे रहें। वह उन्हें पसंद आएँ, बहस-मुबाहसा किए बग़ैर उनकी बात मानें


ऐ इनसान, क्या तू दूसरों को मुजरिम ठहराता है? तू जो कोई भी हो तेरा कोई उज़्र नहीं। क्योंकि तू ख़ुद भी वही कुछ करता है जिसमें तू दूसरों को मुजरिम ठहराता है और यों अपने आपको भी मुजरिम क़रार देता है।


ऐ इनसान, उसने तुझे साफ़ बताया है कि क्या कुछ अच्छा है। रब तुझसे चाहता है कि तू इनसाफ़ क़ायम रखे, मेहरबानी करने में लगा रहे और फ़रोतनी से अपने ख़ुदा के हुज़ूर चलता रहे।


एक बार मैंने बात की और इसके बाद मज़ीद एक दफ़ा, लेकिन अब से मैं जवाब में कुछ नहीं कहूँगा।”


बहन, मुमकिन है आप अपने ख़ाविंद की नजात का बाइस बन जाएँ। या भाई, मुमकिन है आप अपनी बीवी की नजात का बाइस बन जाएँ।


लेकिन बादशाह ने उसे रोक दिया, “मेरा आप और आपके भाई योआब से क्या वास्ता? नहीं, उसे लानत करने दें। हो सकता है रब ने उसे यह करने का हुक्म दिया है। तो फिर हम कौन हैं कि उसे रोकें।”


अल्लाह तो मुझ जैसा इनसान नहीं कि मैं जवाब में उससे कहूँ, ‘आओ हम अदालत में जाकर एक दूसरे का मुक़ाबला करें।’


लेकिन क्या कुल्हाड़ी उसके सामने शेख़ी बघारती जो उसे चलाता है? क्या आरी उसके सामने अपने आप पर फ़ख़र करती जो उसे इस्तेमाल करता है? यह उतना ही नामुमकिन है जितना यह कि लाठी पकड़नेवाले को घुमाए या डंडा आदमी को उठाए।


“ऐ इसराईल, क्या मैं तुम्हारे साथ वैसा सुलूक नहीं कर सकता जैसा कुम्हार अपने बरतन से करता है? जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में तश्कील पाती है उसी तरह तुम मेरे हाथ में तश्कील पाते हो।” यह रब का फ़रमान है।


उस की निसबत दुनिया के तमाम बाशिंदे सिफ़र के बराबर हैं। वह आसमानी फ़ौज और दुनिया के बाशिंदों के साथ जो जी चाहे करता है। उसे कुछ करने से कोई नहीं रोक सकता, कोई उससे जवाब तलब करके पूछ नहीं सकता, “तूने क्या किया?”


ईसा ने जवाब दिया, “भई, किसने मुझे तुम पर जज या तक़सीम करनेवाला मुक़र्रर किया है?”


ताहम तू वही कुछ करता है जिसमें तू दूसरों को मुजरिम ठहराता है। क्या तू समझता है कि ख़ुद अल्लाह की अदालत से बच जाएगा?


क्या कुम्हार का हक़ नहीं है कि गारे के एक ही लौंदे से मुख़्तलिफ़ क़िस्म के बरतन बनाए, कुछ बाइज़्ज़त इस्तेमाल के लिए और कुछ ज़िल्लतआमेज़ इस्तेमाल के लिए?


यह बात अल्लाह पर भी सादिक़ आती है। गो वह अपना ग़ज़ब नाज़िल करना और अपनी क़ुदरत ज़ाहिर करना चाहता था, लेकिन उसने बड़े सब्रो-तहम्मुल से वह बरतन बरदाश्त किए जिन पर उसका ग़ज़ब आना है और जो हलाकत के लिए तैयार किए गए हैं।


आप कौन हैं कि किसी और के ग़ुलाम का फ़ैसला करें? उसका अपना मालिक फ़ैसला करेगा कि वह खड़ा रहे या गिर जाए। और वह ज़रूर खड़ा रहेगा, क्योंकि ख़ुदावंद उसे क़ायम रखने पर क़ादिर है।


बड़े घरों में न सिर्फ़ सोने और चाँदी के बरतन होते हैं बल्कि लकड़ी और मिट्टी के भी। यानी कुछ शरीफ़ कामों के लिए इस्तेमाल होते हैं और कुछ कमक़दर कामों के लिए।


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