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رومیوں 7:6 - किताबे-मुक़द्दस

6 लेकिन अब हम मरकर शरीअत के बंधन से आज़ाद हो गए हैं। अब हम शरीअत की पुरानी ज़िंदगी के तहत ख़िदमत नहीं करते बल्कि रूहुल-क़ुद्स की नई ज़िंदगी के तहत।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

6 لیکن ہم جِس چیز کے قَیدی تھے اُس کے اِعتبار سے مَر گیٔے تو شَریعت کی قَید سے اَیسے چھُوٹ گیٔے کہ اُس کے لفظوں کے پُرانے طریقہ کے مُطابق نہیں بَلکہ خُدا کی رُوح کے نئے طریقہ کے مُطابق خدمت کرتے ہیں۔

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کِتابِ مُقادّس

6 لیکن جِس چِیز کی قَید میں تھے اُس کے اِعتبار سے مَر کر اَب ہم شرِیعت سے اَیسے چُھوٹ گئے کہ رُوح کے نئے طَور پر نہ کہ لَفظوں کے پُرانے طَور پر خِدمت کرتے ہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

6 لیکن اب ہم مر کر شریعت کے بندھن سے آزاد ہو گئے ہیں۔ اب ہم شریعت کی پرانی زندگی کے تحت خدمت نہیں کرتے بلکہ روح القدس کی نئی زندگی کے تحت۔

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رومیوں 7:6
24 حوالہ جات  

उसी ने हमें नए अहद के ख़ादिम होने के लायक़ बना दिया है। और यह अहद लिखी हुई शरीअत पर मबनी नहीं है बल्कि रूह पर, क्योंकि लिखी हुई शरीअत के असर से हम मर जाते हैं जबकि रूह हमें ज़िंदा कर देता है।


मेरे भाइयो, यह बात आप पर भी सादिक़ आती है। जब आप मसीह के बदन का हिस्सा बन गए तो आप मरकर शरीअत के इख़्तियार से आज़ाद हो गए। अब आप उसके साथ पैवस्त हो गए हैं जिसे मुरदों में से ज़िंदा किया गया ताकि हम अल्लाह की ख़िदमत में फल लाएँ।


क्योंकि बपतिस्मे से हमें दफ़नाया गया और उस की मौत में शामिल किया गया ताकि हम मसीह की तरह नई ज़िंदगी गुज़ारें, जिसे बाप की जलाली क़ुदरत ने मुरदों में से ज़िंदा किया।


लेकिन मसीह ने हमारा फ़िद्या देकर हमें शरीअत की लानत से आज़ाद कर दिया है। यह उसने इस तरह किया कि वह हमारी ख़ातिर ख़ुद लानत बना। क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, “जिसे भी दरख़्त से लटकाया गया है उस पर अल्लाह की लानत है।”


साथ साथ आपने नई फ़ितरत पहन ली है, वह फ़ितरत जिसकी तजदीद हमारा ख़ालिक़ अपनी सूरत पर करता जा रहा है ताकि आप उसे और बेहतर तौर पर जान लें।


ख़तना करवाने या न करवाने से कोई फ़रक़ नहीं पड़ता बल्कि फ़रक़ उस वक़्त पड़ता है जब अल्लाह किसी को नए सिरे से ख़लक़ करता है।


इस दुनिया के साँचे में न ढल जाएँ बल्कि अल्लाह को आपकी सोच की तजदीद करने दें ताकि आप वह शक्लो-सूरत अपना सकें जो उसे पसंद है। फिर आप अल्लाह की मरज़ी को पहचान सकेंगे, वह कुछ जो अच्छा, पसंदीदा और कामिल है।


लेकिन अब आप गुनाह की ग़ुलामी से आज़ाद होकर अल्लाह के ग़ुलाम बन गए हैं, जिसके नतीजे में आप मख़सूसो-मुक़द्दस बन जाते हैं और जिसका अंजाम अबदी ज़िंदगी है।


चुनाँचे जो मसीह में है वह नया मख़लूक़ है। पुरानी ज़िंदगी जाती रही और नई ज़िंदगी शुरू हो गई है।


भाइयो, आप तो शरीअत से वाक़िफ़ हैं। तो क्या आप नहीं जानते कि शरीअत उस वक़्त तक इनसान पर इख़्तियार रखती है जब तक वह ज़िंदा है?


हरगिज़ नहीं! हम तो मरकर गुनाह से लाताल्लुक़ हो गए हैं। तो फिर हम किस तरह गुनाह को अपने आप पर हुकूमत करने दे सकते हैं?


(आपकी फ़ितरती कमज़ोरी की वजह से मैं ग़ुलामी की यह मिसाल दे रहा हूँ ताकि आप मेरी बात समझ पाएँ।) पहले आपने अपने आज़ा को नजासत और बेदीनी की ग़ुलामी में दे रखा था जिसके नतीजे में आपकी बेदीनी बढ़ती गई। लेकिन अब आप अपने आज़ा को रास्तबाज़ी की ग़ुलामी में दे दें ताकि आप मुक़द्दस बन जाएँ।


आप भी अपने आपको ऐसा समझें। आप भी मरकर गुनाह की हुकूमत से निकल गए हैं और अब आपकी मसीह में ज़िंदगी अल्लाह के लिए मख़सूस है।


ख़ुदा ही मेरा गवाह है जिसकी ख़िदमत मैं अपनी रूह में करता हूँ जब मैं उसके फ़रज़ंद के बारे में ख़ुशख़बरी फैलाता हूँ, मैं लगातार आपको याद करता रहता हूँ


उस वक़्त मैं उन्हें एक ही दिल बख़्शकर उनमें नई रूह डालूँगा। मैं उनका संगीन दिल निकालकर उन्हें गोश्त-पोस्त का नरम दिल अता करूँगा।


क्योंकि हम ही हक़ीक़ी ख़तना के पैरोकार हैं, हम ही हैं जो अल्लाह के रूह में परस्तिश करते, मसीह ईसा पर फ़ख़र करते और इनसानी ख़ूबियों पर भरोसा नहीं करते।


तब मैं तुम्हें नया दिल बख़्शकर तुममें नई रूह डाल दूँगा। मैं तुम्हारा संगीन दिल निकालकर तुम्हें गोश्त-पोस्त का नरम दिल अता करूँगा।


शादी की मिसाल लें। जब किसी औरत की शादी होती है तो शरीअत उसका शौहर के साथ बंधन उस वक़्त तक क़ायम रखती है जब तक शौहर ज़िंदा है। अगर शौहर मर जाए तो फिर वह इस बंधन से आज़ाद हो गई।


और नए इनसान को पहन लें जो यों बनाया गया है कि वह हक़ीक़ी रास्तबाज़ी और क़ुद्दूसियत में अल्लाह के मुशाबेह है।


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