19 (आपकी फ़ितरती कमज़ोरी की वजह से मैं ग़ुलामी की यह मिसाल दे रहा हूँ ताकि आप मेरी बात समझ पाएँ।) पहले आपने अपने आज़ा को नजासत और बेदीनी की ग़ुलामी में दे रखा था जिसके नतीजे में आपकी बेदीनी बढ़ती गई। लेकिन अब आप अपने आज़ा को रास्तबाज़ी की ग़ुलामी में दे दें ताकि आप मुक़द्दस बन जाएँ।
19 میں تمہاری اِنسانی کمزوری کے سبب سے بطور اِنسان یہ کہتا ہُوں۔ جِس طرح تُم نے اَپنے اَعضا کو ناپاکی اَور نافرمانی کی غُلامی میں دے دیا تھا اَور وہ نافرمانی بڑھتی جاتی تھی، اَب اَپنے اَعضا کو پاکیزگی کے لیٔے راستبازی کی غُلامی میں دے دو۔
19 مَیں تُمہاری اِنسانی کمزوری کے سبب سے اِنسانی طَور پر کہتا ہُوں۔ جِس طرح تُم نے اپنے اعضا بدکاری کرنے کے لِئے ناپاکی اور بدکاری کی غُلامی کے حَوالہ کِئے تھے اُسی طرح اب اپنے اعضا پاک ہونے کے لِئے راست بازی کی غُلامی کے حوالہ کر دو۔
19 (آپ کی فطرتی کمزوری کی وجہ سے مَیں غلامی کی یہ مثال دے رہا ہوں تاکہ آپ میری بات سمجھ پائیں۔) پہلے آپ نے اپنے اعضا کو نجاست اور بےدینی کی غلامی میں دے رکھا تھا جس کے نتیجے میں آپ کی بےدینی بڑھتی گئی۔ لیکن اب آپ اپنے اعضا کو راست بازی کی غلامی میں دے دیں تاکہ آپ مُقدّس بن جائیں۔
अपने बदन के किसी भी अज़ु को गुनाह की ख़िदमत के लिए पेश न करें, न उसे नारास्ती का हथियार बनने दें। इसके बजाए अपने आपको अल्लाह की ख़िदमत के लिए पेश करें। क्योंकि पहले आप मुरदा थे, लेकिन अब आप ज़िंदा हो गए हैं। चुनाँचे अपने तमाम आज़ा को अल्लाह की ख़िदमत के लिए पेश करें और उन्हें रास्ती के हथियार बनने दें।
कोई कह सकता है, “हमारी नारास्ती का एक अच्छा मक़सद होता है, क्योंकि इससे लोगों पर अल्लाह की रास्ती ज़ाहिर होती है। तो क्या अल्लाह बेइनसाफ़ नहीं होगा अगर वह अपना ग़ज़ब हम पर नाज़िल करे?” (मैं इनसानी ख़याल पेश कर रहा हूँ)।
भाइयो, इनसानी ज़िंदगी की एक मिसाल लें। जब दो पार्टियाँ किसी मामले में मुत्तफ़िक़ होकर मुआहदा करती हैं तो कोई इस मुआहदे को मनसूख़ या इसमें इज़ाफ़ा नहीं कर सकता।
और वह ऐसा इमामे-आज़म नहीं है जो हमारी कमज़ोरियों को देखकर हमदर्दी न दिखाए बल्कि अगरचे वह बेगुनाह रहा तो भी हमारी तरह उसे हर क़िस्म की आज़माइश का सामना करना पड़ा।
इसी तरह रूहुल-क़ुद्स भी हमारी कमज़ोर हालत में हमारी मदद करता है, क्योंकि हम नहीं जानते कि किस तरह मुनासिब दुआ माँगें। लेकिन रूहुल-क़ुद्स ख़ुद नाक़ाबिले-बयान आहें भरते हुए हमारी शफ़ाअत करता है।
और ईसा गलील के पूरे इलाक़े में फिरता रहा। जहाँ भी वह जाता वह यहूदी इबादतख़ानों में तालीम देता, बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाता और हर क़िस्म की बीमारी और अलालत से शफ़ा देता था।
लेकिन मुझे अपने आज़ा में एक और तरह की शरीअत दिखाई देती है, ऐसी शरीअत जो मेरी समझ की शरीअत के ख़िलाफ़ लड़कर मुझे गुनाह की शरीअत का क़ैदी बना देती है, उस शरीअत का जो मेरे आज़ा में मौजूद है।