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رومیوں 3:22 - किताबे-मुक़द्दस

22 राह यह है कि जब हम ईसा मसीह पर ईमान लाते हैं तो अल्लाह हमें रास्तबाज़ क़रार देता है। और यह राह सबके लिए है। क्योंकि कोई भी फ़रक़ नहीं,

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

22 یہ خُدا کی وہ راستبازی ہے جو صِرف یِسوعؔ المسیح پر ایمان لانے سے اُن تمام اِنسانوں کو حاصل ہوتی ہے۔ المسیح پر ایمان لانے سے یہُودی اَور غَیریہُودی کے مابین کویٔی تفرِیق نہیں،

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کِتابِ مُقادّس

22 یعنی خُدا کی وہ راست بازی جو یِسُوعؔ مسِیح پر اِیمان لانے سے سب اِیمان لانے والوں کو حاصِل ہوتی ہے کیونکہ کُچھ فرق نہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

22 راہ یہ ہے کہ جب ہم عیسیٰ مسیح پر ایمان لاتے ہیں تو اللہ ہمیں راست باز قرار دیتا ہے۔ اور یہ راہ سب کے لئے ہے۔ کیونکہ کوئی بھی فرق نہیں،

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رومیوں 3:22
30 حوالہ جات  

इसमें कोई फ़रक़ नहीं कि वह यहूदी हो या ग़ैरयहूदी। क्योंकि सबका एक ही ख़ुदावंद है, जो फ़ैयाज़ी से हर एक को देता है जो उसे पुकारता है।


अब न यहूदी रहा न ग़ैरयहूदी, न ग़ुलाम रहा न आज़ाद, न मर्द रहा न औरत। मसीह ईसा में आप सबके सब एक हैं।


लेकिन हम जानते हैं कि इनसान को शरीअत की पैरवी करने से रास्तबाज़ नहीं ठहराया जाता बल्कि ईसा मसीह पर ईमान लाने से। हम भी मसीह ईसा पर ईमान लाए हैं ताकि हमें रास्तबाज़ क़रार दिया जाए, शरीअत की पैरवी करने से नहीं बल्कि मसीह पर ईमान लाने से। क्योंकि शरीअत की पैरवी करने से किसी को भी रास्तबाज़ क़रार नहीं दिया जाएगा।


अब जो मसीह ईसा में हैं उन्हें मुजरिम नहीं ठहराया जाता।


जहाँ यह काम हो रहा है वहाँ लोगों में कोई फ़रक़ नहीं है, ख़ाह कोई ग़ैरयहूदी हो या यहूदी, मख़तून हो या नामख़तून, ग़ैरयूनानी हो या स्कूती, ग़ुलाम हो या आज़ाद। कोई फ़रक़ नहीं पड़ता, सिर्फ़ मसीह ही सब कुछ और सबमें है।


और उसमें पाया जाऊँ। लेकिन मैं इस नौबत तक अपनी उस रास्तबाज़ी के ज़रीए नहीं पहुँच सकता जो शरीअत के ताबे रहने से हासिल होती है। इसके लिए वह रास्तबाज़ी ज़रूरी है जो मसीह पर ईमान लाने से मिलती है, जो अल्लाह की तरफ़ से है और जो ईमान पर मबनी होती है।


ऐ इनसान, क्या तू दूसरों को मुजरिम ठहराता है? तू जो कोई भी हो तेरा कोई उज़्र नहीं। क्योंकि तू ख़ुद भी वही कुछ करता है जिसमें तू दूसरों को मुजरिम ठहराता है और यों अपने आपको भी मुजरिम क़रार देता है।


मैं रब से निहायत ही शादमान हूँ, मेरी जान अपने ख़ुदा की तारीफ़ में ख़ुशी के गीत गाती है। क्योंकि जिस तरह दूल्हा अपना सर इमाम की-सी पगड़ी से सजाता और दुलहन अपने आपको अपने ज़ेवरात से आरास्ता करती है उसी तरह अल्लाह ने मुझे नजात का लिबास पहनाकर रास्ती की चादर में लपेटा है।


और इस तरह ही कलामे-मुक़द्दस की यह बात पूरी हुई, “इब्राहीम ने अल्लाह पर भरोसा रखा। इस बिना पर अल्लाह ने उसे रास्तबाज़ क़रार दिया।” इसी वजह से वह “अल्लाह का दोस्त” कहलाया।


उसने हममें और उनमें कोई भी फ़रक़ न रखा बल्कि ईमान से उनके दिलों को भी पाक कर दिया।


क्योंकि कौन आपको किसी दूसरे से अफ़ज़ल क़रार देता है? जो कुछ आपके पास है क्या वह आपको मुफ़्त नहीं मिला? और अगर मुफ़्त मिला तो इस पर शेख़ी क्यों मारते हैं गोया कि आपने उसे अपनी मेहनत से हासिल किया हो?


इससे हम क्या कहना चाहते हैं? यह कि गो ग़ैरयहूदी रास्तबाज़ी की तलाश में न थे तो भी उन्हें रास्तबाज़ी हासिल हुई, ऐसी रास्तबाज़ी जो ईमान से पैदा हुई।


लेकिन बाप ने अपने नौकरों को बुलाया और कहा, ‘जल्दी करो, बेहतरीन सूट लाकर इसे पहनाओ। इसके हाथ में अंगूठी और पाँवों में जूते पहना दो।


उसके दौरे-हुकूमत में यहूदाह को छुटकारा मिलेगा और इसराईल महफ़ूज़ ज़िंदगी गुज़ारेगा। वह ‘रब हमारी रास्तबाज़ी’ कहलाएगा।


तेरी क़ौम और तेरे मुक़द्दस शहर के लिए 70 हफ़ते मुक़र्रर किए गए हैं ताकि उतने में जरायम और गुनाहों का सिलसिला ख़त्म किया जाए, क़ुसूर का कफ़्फ़ारा दिया जाए, अबदी रास्ती क़ायम की जाए, रोया और पेशगोई की तसदीक़ की जाए और मुक़द्दसतरीन जगह को मसह करके मख़सूसो-मुक़द्दस किया जाए।


आप तो इस आदमी से वाक़िफ़ हैं जिसे देख रहे हैं। अब वह ईसा के नाम पर ईमान लाने से बहाल हो गया है, क्योंकि जो ईमान ईसा के ज़रीए मिलता है उसी ने इस आदमी को आपके सामने पूरी सेहतमंदी अता की।


रूहुल-क़ुद्स ने मुझे बताया कि मैं बग़ैर झिजके उनके साथ चला जाऊँ। यह मेरे छः भाई भी मेरे साथ गए। हम रवाना होकर उस आदमी के घर में दाख़िल हुए जिसने मुझे बुलाया था।


क्योंकि इस ख़ुशख़बरी में अल्लाह की ही रास्तबाज़ी ज़ाहिर होती है, वह रास्तबाज़ी जो शुरू से आख़िर तक ईमान पर मबनी है। यही बात कलामे-मुक़द्दस में दर्ज है जब लिखा है, “रास्तबाज़ ईमान ही से जीता रहेगा।”


क्योंकि अल्लाह एक ही है जो मख़तून और नामख़तून दोनों को ईमान ही से रास्तबाज़ ठहराएगा।


चुनाँचे यह मीरास ईमान से मिलती है ताकि इसकी बुनियाद अल्लाह का फ़ज़ल हो और इसका वादा इब्राहीम की तमाम नसल के लिए हो, न सिर्फ़ शरीअत के पैरोकारों के लिए बल्कि उनके लिए भी जो इब्राहीम का-सा ईमान रखते हैं। यही हम सबका बाप है।


क्योंकि मसीह में शरीअत का मक़सद पूरा हो गया, हाँ वह अंजाम तक पहुँच गई है। चुनाँचे जो भी मसीह पर ईमान रखता है वही रास्तबाज़ ठहरता है।


ख़ाह हम यहूदी थे या यूनानी, ग़ुलाम थे या आज़ाद, बपतिस्मे से हम सबको एक ही रूह की मारिफ़त एक ही बदन में शामिल किया गया है, हम सबको एक ही रूह पिलाया गया है।


और यों मैं ख़ुद ज़िंदा न रहा बल्कि मसीह मुझमें ज़िंदा है। अब जो ज़िंदगी मैं इस जिस्म में गुज़ारता हूँ वह अल्लाह के फ़रज़ंद पर ईमान लाने से गुज़ारता हूँ। उसी ने मुझसे मुहब्बत रखकर मेरे लिए अपनी जान दी।


लेकिन कलामे-मुक़द्दस फ़रमाता है कि पूरी दुनिया गुनाह के क़ब्ज़े में है। चुनाँचे हमें अल्लाह का वादा सिर्फ़ ईसा मसीह पर ईमान लाने से हासिल होता है।


उसमें और उस पर ईमान रखकर हम पूरी आज़ादी और एतमाद के साथ अल्लाह के हुज़ूर आ सकते हैं।


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