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رومیوں 3:10 - किताबे-मुक़द्दस

10 कलामे-मुक़द्दस में यों लिखा है, “कोई नहीं जो रास्तबाज़ है, एक भी नहीं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

10 جَیسا کہ کِتاب مُقدّس میں لِکھّا ہے: ”کویٔی بھی اِنسان راستباز نہیں، ایک بھی نہیں؛

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کِتابِ مُقادّس

10 چُنانچہ لِکھا ہے کہ کوئی راست باز نہیں۔ ایک بھی نہیں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

10 کلامِ مُقدّس میں یوں لکھا ہے، ”کوئی نہیں جو راست باز ہے، ایک بھی نہیں۔

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رومیوں 3:10
29 حوالہ جات  

सबने गुनाह किया, सब अल्लाह के उस जलाल से महरूम हैं जिसका वह तक़ाज़ा करता है,


भला इनसान क्या है कि पाक-साफ़ ठहरे? औरत से पैदा हुई मख़लूक़ क्या है कि रास्तबाज़ साबित हो? कुछ भी नहीं!


तो फिर इनसान अल्लाह के सामने किस तरह रास्तबाज़ ठहर सकता है? जो औरत से पैदा हुआ वह किस तरह पाक-साफ़ साबित हो सकता है?


दिल ही से बुरे ख़यालात, क़त्लो-ग़ारत, ज़िनाकारी, हरामकारी, चोरी, झूटी गवाही और बुहतान निकलते हैं।


दिल हद से ज़्यादा फ़रेबदेह है, और उसका इलाज नामुमकिन है। कौन उसका सहीह इल्म रखता है?


क्योंकि एक वक़्त था जब हम भी नासमझ, नाफ़रमान और सहीह राह से भटके हुए थे। उस वक़्त हम कई तरह की शहवतों और ग़लत ख़ाहिशों की ग़ुलामी में थे। हम बुरे कामों और हसद करने में ज़िंदगी गुज़ारते थे। दूसरे हमसे नफ़रत करते थे और हम भी उनसे नफ़रत करते थे।


ईसा ने पूछा, “तू मुझे नेक क्यों कहता है? कोई नेक नहीं सिवाए एक के और वह है अल्लाह।


क्योंकि कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, “अपने आपको मख़सूसो-मुक़द्दस रखो क्योंकि मैं मुक़द्दस हूँ।”


कौन नापाक चीज़ को पाक-साफ़ कर सकता है? कोई नहीं!


कभी नहीं! लाज़िम है कि अल्लाह सच्चा ठहरे गो हर इनसान झूटा है। यों कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, “लाज़िम है कि तू बोलते वक़्त रास्त ठहरे और अदालत करते वक़्त ग़ालिब आए।”


तो फिर वह इनसान पर भरोसा क्यों रखे जो क़ाबिले-घिन और बिगड़ा हुआ है, जो बुराई को पानी की तरह पी लेता है।


लेकिन बाक़ी सब शहर के बाहर रहेंगे। कुत्ते, ज़िनाकार, क़ातिल, बुतपरस्त और तमाम वह लोग जो झूट को प्यार करते और उस पर अमल करते हैं सबके सब बाहर रहेंगे।


लेकिन बुज़दिलों, ग़ैरईमानदारों, घिनौनों, क़ातिलों, ज़िनाकारों, जादूगरों, बुतपरस्तों और तमाम झूटे लोगों का अंजाम जलती हुई गंधक की शोलाख़ेज़ झील है। यह दूसरी मौत है।”


अल्लाह की हिदायत और मुकाशफ़ा की तरफ़ रुजू करो! जो इनकार करे उस पर सुबह की रौशनी कभी नहीं चमकेगी।


जिस तरह कलामे-मुक़द्दस में लिखा है, “आज तक अल्लाह ने उन्हें ऐसी हालत में रखा है कि उनकी रूह मदहोश है, उनकी आँखें देख नहीं सकतीं और उनके कान सुन नहीं सकते।”


अपने ख़ादिम को अपनी अदालत में न ला, क्योंकि तेरे हुज़ूर कोई भी जानदार रास्तबाज़ नहीं ठहर सकता।


कोई नहीं जो समझदार है, कोई नहीं जो अल्लाह का तालिब है।


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