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رومیوں 2:27 - किताबे-मुक़द्दस

27 चुनाँचे जो नामख़तून ग़ैरयहूदी शरीअत पर अमल करते हैं वह आप यहूदियों को मुजरिम ठहराएँगे जिनका ख़तना हुआ है और जिनके पास शरीअत है, क्योंकि आप शरीअत पर अमल नहीं करते।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

27 وہ شخص جو نامختون ہے مگر شَریعت پر عَمل کرتا ہے تو وہ تُمہیں شَریعت کی نافرمانی کرنے کے لیٔے قُصُوروار نہ ٹھہرائے گا، جَب کہ تمہارے پاس جو شَریعت مَوجُود ہے، اَور تمہارا ختنہ بھی ہو چُکاہے۔

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کِتابِ مُقادّس

27 اور جو شخص قَومِیّت کے سبب سے نامختُون رہا اگر وہ شرِیعت کو پُورا کرے تو کیا تُجھے جو باوُجُود کلام اور خَتنہ کے شرِیعت سے عدُول کرتا ہے قصُووار نہ ٹھہرائے گا؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

27 چنانچہ جو نامختون غیریہودی شریعت پر عمل کرتے ہیں وہ آپ یہودیوں کو مجرم ٹھہرائیں گے جن کا ختنہ ہوا ہے اور جن کے پاس شریعت ہے، کیونکہ آپ شریعت پر عمل نہیں کرتے۔

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رومیوں 2:27
20 حوالہ جات  

उसी ने हमें नए अहद के ख़ादिम होने के लायक़ बना दिया है। और यह अहद लिखी हुई शरीअत पर मबनी नहीं है बल्कि रूह पर, क्योंकि लिखी हुई शरीअत के असर से हम मर जाते हैं जबकि रूह हमें ज़िंदा कर देता है।


ताकि हममें शरीअत का तक़ाज़ा पूरा हो जाए, हम जो पुरानी फ़ितरत के मुताबिक़ नहीं बल्कि रूह के मुताबिक़ चलते हैं।


बल्कि हक़ीक़ी यहूदी वह है जो बातिन में यहूदी है। और हक़ीक़ी ख़तना उस वक़्त होता है जब दिल का ख़तना हुआ है। ऐसा ख़तना शरीअत से नहीं बल्कि रूहुल-क़ुद्स के वसीले से किया जाता है। और ऐसे यहूदी को इनसान की तरफ़ से नहीं बल्कि अल्लाह की तरफ़ से तारीफ़ मिलती है।


ईमान के ज़रीए हम जान लेते हैं कि कायनात को अल्लाह के कलाम से ख़लक़ किया गया, कि जो कुछ हम देख सकते हैं नज़र आनेवाली चीज़ों से नहीं बना।


क्योंकि पूरी शरीअत एक ही हुक्म में समाई हुई है, “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”


जो किसी से मुहब्बत रखता है वह उससे ग़लत सुलूक नहीं करता। यों मुहब्बत शरीअत के तमाम तक़ाज़े पूरे करती है।


बेसमझों का मुअल्लिम और बच्चों का उस्ताद हूँ।’ एक लिहाज़ से यह दुरुस्त भी है, क्योंकि शरीअत की सूरत में तेरे पास इल्मो-इरफ़ान और सच्चाई मौजूद है।


फिर अल्लाह ने उसे हटाकर दाऊद को तख़्त पर बिठा दिया। दाऊद वही आदमी है जिसके बारे में अल्लाह ने गवाही दी, ‘मैंने दाऊद बिन यस्सी में एक ऐसा आदमी पाया है जो मेरी सोच रखता है। जो कुछ भी मैं चाहता हूँ उसे वह करेगा।’


ईसा ने जवाब दिया, “अब होने ही दे, क्योंकि मुनासिब है कि हम यह करते हुए अल्लाह की रास्त मरज़ी पूरी करें।” इस पर यहया मान गया।


इसमें वह साबित करते हैं कि शरीअत के तक़ाज़े उनके दिल पर लिखे हुए हैं। उनका ज़मीर भी इसकी गवाही देता है, क्योंकि उनके ख़यालात कभी एक दूसरे की मज़म्मत और कभी एक दूसरे का दिफ़ा भी करते हैं।


ख़तने का फ़ायदा तो उस वक़्त होता है जब तू शरीअत पर अमल करता है। लेकिन अगर तू उस की हुक्मअदूली करता है तो तू नामख़तून जैसा है।


इसके बरअक्स अगर नामख़तून ग़ैरयहूदी शरीअत के तक़ाज़ों को पूरा करता है तो क्या अल्लाह उसे मख़तून यहूदी के बराबर नहीं ठहराएगा?


क्योंकि अल्लाह एक ही है जो मख़तून और नामख़तून दोनों को ईमान ही से रास्तबाज़ ठहराएगा।


न ख़तना कुछ चीज़ है और न ख़तने का न होना, बल्कि अल्लाह के अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारना ही सब कुछ है।


यह बात ज़हन में रखें कि माज़ी में आप क्या थे। यहूदी सिर्फ़ अपने लिए लफ़्ज़ मख़तून इस्तेमाल करते थे अगरचे वह अपना ख़तना सिर्फ़ इनसानी हाथों से करवाते हैं। आपको जो ग़ैरयहूदी हैं वह नामख़तून क़रार देते थे।


और आप बचपन से मुक़द्दस सहीफ़ों से वाक़िफ़ हैं। अल्लाह का यह कलाम आपको वह हिकमत अता कर सकता है जो मसीह ईसा पर ईमान लाने से नजात तक पहुँचाती है।


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