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رومیوں 14:19 - किताबे-मुक़द्दस

19 चुनाँचे आएँ, हम पूरी जिद्दो-जहद के साथ वह कुछ करने की कोशिश करें जो सुलह-सलामती और एक दूसरे की रूहानी तामीरो-तरक़्क़ी का बाइस है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

19 آؤ ہم اِن باتوں کی جُستُجو میں رہیں جو اَمن اَور باہمی ترقّی کا باعث ہوتی ہیں۔

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کِتابِ مُقادّس

19 پس ہم اُن باتوں کے طالِب رہیں جِن سے میل مِلاپ اور باہمی ترقّی ہو۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

19 چنانچہ آئیں، ہم پوری جد و جہد کے ساتھ وہ کچھ کرنے کی کوشش کریں جو صلح سلامتی اور ایک دوسرے کی روحانی تعمیر و ترقی کا باعث ہے۔

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رومیوں 14:19
28 حوالہ جات  

कोई भी बुरी बात आपके मुँह से न निकले बल्कि सिर्फ़ ऐसी बातें जो दूसरों की ज़रूरियात के मुताबिक़ उनकी तामीर करें। यों सुननेवालों को बरकत मिलेगी।


अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करें कि जहाँ तक मुमकिन हो सबके साथ मेल-मिलाप रखें।


वह बुराई से मुँह फेरकर नेक काम करे, सुलह-सलामती का तालिब होकर उसके पीछे लगा रहे।


बल्कि हर एक अपने पड़ोसी को उस की बेहतरी और रूहानी तामीरो-तरक़्क़ी के लिए ख़ुश करे।


सबके साथ मिलकर सुलह-सलामती और क़ुद्दूसियत के लिए जिद्दो-जहद करते रहें, क्योंकि जो मुक़द्दस नहीं है वह ख़ुदावंद को कभी नहीं देखेगा।


भाइयो, आख़िर में मैं आपको सलाम कहता हूँ। सुधर जाएँ, एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें, एक ही सोच रखें और सुलह-सलामती के साथ ज़िंदगी गुज़ारें। फिर मुहब्बत और सलामती का ख़ुदा आपके साथ होगा।


नमक अच्छी चीज़ है। लेकिन अगर उसका ज़ायक़ा जाता रहे तो उसे क्योंकर दुबारा नमकीन किया जा सकता है? अपने दरमियान नमक की खूबियाँ बरक़रार रखो और सुलह-सलामती से एक दूसरे के साथ ज़िंदगी गुज़ारो।”


मुबारक हैं वह जो सुलह कराते हैं, क्योंकि वह अल्लाह के फ़रज़ंद कहलाएँगे।


वह बुराई से मुँह फेरकर नेक काम करे, सुलह-सलामती का तालिब होकर उसके पीछे लगा रहे।


भाइयो, फिर क्या होना चाहिए? जब आप जमा होते हैं तो हर एक के पास कोई गीत या तालीम या मुकाशफ़ा या ग़ैरज़बान या इसका तरजुमा हो। इन सबका मक़सद ख़ुदा की जमात की तामीरो-तरक़्क़ी हो।


इसी तरह मैं भी सबको पसंद आने की हर मुमकिन कोशिश करता हूँ। मैं अपने ही फ़ायदे के ख़याल में नहीं रहता बल्कि दूसरों के ताकि बहुतेरे नजात पाएँ।


दाऊद का ज़बूर। ज़ियारत का गीत। जब भाई मिलकर और यगांगत से रहते हैं यह कितना अच्छा और प्यारा है।


जवानी की बुरी ख़ाहिशात से भागकर रास्तबाज़ी, ईमान, मुहब्बत और सुलह-सलामती के पीछे लगे रहें। और यह उनके साथ मिलकर करें जो ख़ुलूसदिली से ख़ुदावंद की परस्तिश करते हैं।


उन्हें फ़रज़ी कहानियों और ख़त्म न होनेवाले नसबनामे के पीछे न लगने दें। इनसे महज़ बहस-मुबाहसा पैदा होता है और अल्लाह का नजातबख़्श मनसूबा पूरा नहीं होता। क्योंकि यह मनसूबा सिर्फ़ ईमान से तकमील तक पहुँचता है।


आप काफ़ी देर से सोच रहे होंगे कि हम आपके सामने अपना दिफ़ा कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि हम मसीह में होते हुए अल्लाह के हुज़ूर ही यह कुछ बयान कर रहे हैं। और मेरे अज़ीज़ो, जो कुछ भी हम करते हैं हम आपकी तामीर करने के लिए करते हैं।


लेकिन अगर ग़ैरईमानदार शौहर या बीवी अपना ताल्लुक़ मुंक़ते कर ले तो उसे जाने दें। ऐसी सूरत में ईमानदार भाई या बहन इस बंधन से आज़ाद हो गए। मगर अल्लाह ने आपको सुलह-सलामती की ज़िंदगी गुज़ारने के लिए बुलाया है।


अब मैं बुतों की क़ुरबानी के बारे में बात करता हूँ। हम जानते हैं कि हम सब साहबे-इल्म हैं। इल्म इनसान के फूलने का बाइस बनता है जबकि मुहब्बत उस की तामीर करती है।


सब कुछ रवा तो है, लेकिन सब कुछ मुफ़ीद नहीं। सब कुछ जायज़ तो है, लेकिन सब कुछ हमारी तामीरो-तरक़्क़ी का बाइस नहीं होता।


इसके बरअक्स नबुव्वत करनेवाला लोगों से ऐसी बातें करता है जो उनकी तामीरो-तरक़्क़ी, हौसलाअफ़्ज़ाई और तसल्ली का बाइस बनती हैं।


ग़ैरज़बान बोलनेवाला अपनी तामीरो-तरक़्क़ी करता है जबकि नबुव्वत करनेवाला जमात की।


मैं चाहता हूँ कि आप सब ग़ैरज़बानें बोलें, लेकिन इससे ज़्यादा यह ख़ाहिश रखता हूँ कि आप नबुव्वत करें। नबुव्वत करनेवाला ग़ैरज़बानें बोलनेवाले से अहम है। हाँ, ग़ैरज़बानें बोलनेवाला भी अहम है बशर्तेकि अपनी ज़बान का तरजुमा करे, क्योंकि इससे ख़ुदा की जमात की तामीरो-तरक़्क़ी होती है।


इनका मक़सद यह है कि मुक़द्दसीन को ख़िदमत करने के लिए तैयार किया जाए और यों मसीह के बदन की तामीरो-तरक़्क़ी हो जाए।


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