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رومیوں 13:9 - किताबे-मुक़द्दस

9 मसलन शरीअत में लिखा है, “क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, लालच न करना।” और दीगर जितने अहकाम हैं इस एक ही हुक्म में समाए हुए हैं कि “अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

9 مطلب یہ ہے کہ یہ سَب اَحکام، ”تُم زنا نہ کرنا، تُم خُون نہ کرنا، تُم چوری نہ کرنا، تُم لالچ نہ کرنا،“ اَور اِن کے علاوہ اَور ایک حُکم جو باقی ہے اُن سَب کا خُلاصہ اِس ایک حُکم میں پایا جاتا ہے: ”اَپنے پڑوسی سے اَپنی مانِند مَحَبّت رکھنا۔“

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کِتابِ مُقادّس

9 کیونکہ یہ باتیں کہ زِنا نہ کر۔ خُون نہ کر۔ چوری نہ کر۔ لالچ نہ کر اور اِن کے سِوا اَور جو کوئی حُکم ہو اُن سب کا خُلاصہ اِس بات میں پایا جاتا ہے کہ اپنے پڑوسی سے اپنی مانِند مُحبّت رکھ۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

9 مثلاً شریعت میں لکھا ہے، ”قتل نہ کرنا، زنا نہ کرنا، چوری نہ کرنا، لالچ نہ کرنا۔“ اور دیگر جتنے احکام ہیں اِس ایک ہی حکم میں سمائے ہوئے ہیں کہ ”اپنے پڑوسی سے ویسی محبت رکھنا جیسی تُو اپنے آپ سے رکھتا ہے۔“

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رومیوں 13:9
13 حوالہ جات  

और दूसरा हुक्म इसके बराबर यह है, ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।’


आदमी ने जवाब दिया, “‘रब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपनी पूरी ताक़त और अपने पूरे ज़हन से प्यार करना।’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है’।”


दूसरा हुक्म यह है : ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।’ दीगर कोई भी हुक्म इन दो अहकाम से अहम नहीं है।”


इंतक़ाम न लेना। अपनी क़ौम के किसी शख़्स पर देर तक तेरा ग़ुस्सा न रहे बल्कि अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है। मैं रब हूँ।


भाइयो, आपको आज़ाद होने के लिए बुलाया गया है। लेकिन ख़बरदार रहें कि इस आज़ादी से आपकी गुनाहआलूदा फ़ितरत को अमल में आने का मौक़ा न मिले। इसके बजाए मुहब्बत की रूह में एक दूसरे की ख़िदमत करें।


उसके साथ ऐसा सुलूक कर जैसा अपने हमवतनों के साथ करता है। जिस तरह तू अपने आपसे मुहब्बत रखता है उसी तरह उससे भी मुहब्बत रखना। याद रहे कि तुम ख़ुद मिसर में परदेसी थे। मैं रब तुम्हारा ख़ुदा हूँ।


तू शरीअत के अहकाम से तो वाक़िफ़ है कि ज़िना न करना, क़त्ल न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।”


तू शरीअत के अहकाम से तो वाक़िफ़ है। क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, धोका न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।”


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