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زبور 89:46 - किताबे-मुक़द्दस

46 ऐ रब, कब तक? क्या तू अपने आपको हमेशा तक छुपाए रखेगा? क्या तेरा क़हर अबद तक आग की तरह भड़कता रहेगा?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

46 اَے یَاہوِہ، کب تک؟ کیا آپ اَپنے آپ کو ہمیشہ کے لیٔے چُھپائے رکھیں گے؟ آپ کا غضب کب تک آگ کی مانند بھڑکتا رہے گا؟

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کِتابِ مُقادّس

46 اَے خُداوند! کب تک؟ کیا تُو ہمیشہ تک پوشِیدہ رہے گا؟ تیرے قہر کی آگ کب تک بھڑکتی رہے گی؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

46 اے رب، کب تک؟ کیا تُو اپنے آپ کو ہمیشہ تک چھپائے رکھے گا؟ کیا تیرا قہر ابد تک آگ کی طرح بھڑکتا رہے گا؟

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زبور 89:46
17 حوالہ جات  

ऐ रब, कब तक? क्या तू हमेशा तक ग़ुस्से होगा? तेरी ग़ैरत कब तक आग की तरह भड़कती रहेगी?


क़ौम के जवान नज़रे-आतिश हुए, और उस की कुँवारियों के लिए शादी के गीत गाए न गए।


ऐ रब, दुबारा हमारी तरफ़ रुजू फ़रमा! तू कब तक दूर रहेगा? अपने ख़ादिमों पर तरस खा!


ऐ रब, तू मेरी जान को क्यों रद्द करता, अपने चेहरे को मुझसे पोशीदा क्यों रखता है?


क्योंकि हमारा ख़ुदा हक़ीक़तन भस्म कर देनेवाली आग है।


और भड़कती हुई आग में उन्हें सज़ा देगा जो न अल्लाह को जानते हैं, न हमारे ख़ुदावंद ईसा की ख़ुशख़बरी के ताबे हैं।


फिर मैं अपने घर वापस जाकर उस वक़्त तक उनसे दूर रहूँगा जब तक वह अपना क़ुसूर तसलीम करके मेरे चेहरे को तलाश न करें। क्योंकि जब वह मुसीबत में फँस जाएंगे तब ही मुझे तलाश करेंगे।”


ऐ दाऊद के घराने, रब फ़रमाता है कि हर सुबह लोगों का इनसाफ़ करो। जिसे लूट लिया गया हो उसे ज़ालिम के हाथ से बचाओ! ऐसा न हो कि मेरा ग़ज़ब तुम्हारी शरीर हरकतों की वजह से तुम पर नाज़िल होकर आग की तरह भड़क उठे और कोई न हो जो उसे बुझा सके।


ऐ यहूदाह और यरूशलम के बाशिंदो, अपने आपको रब के लिए मख़सूस करके अपना ख़तना कराओ यानी अपने दिलों का ख़तना कराओ, वरना मेरा क़हर तुम्हारे ग़लत कामों के बाइस कभी न बुझनेवाली आग की तरह तुझ पर नाज़िल होगा।


ऐ इसराईल के ख़ुदा और नजातदहिंदा, यक़ीनन तू अपने आपको छुपाए रखनेवाला ख़ुदा है।


मैं ख़ुद रब के इंतज़ार में रहूँगा जिसने अपने चेहरे को याक़ूब के घराने से छुपा लिया है। उसी से मैं उम्मीद रखूँगा।


क्या तू हमेशा तक हमसे ग़ुस्से रहेगा? क्या तू अपना क़हर पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रखेगा?


ऐ रब, तू इतना दूर क्यों खड़ा है? मुसीबत के वक़्त तू अपने आपको पोशीदा क्यों रखता है?


शिमाल मैं उसे ढूँडूँ तो वह दिखाई नहीं देता, जुनूब की तरफ़ रुख़ करूँ तो वहाँ भी पोशीदा रहता है।


मैं बोला, “ऐ मेरे ख़ुदा, मुझे ज़िंदों के मुल्क से दूर न कर, मेरी ज़िंदगी तो अधूरी रह गई है। लेकिन तेरे साल पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रहते हैं।


बेशक तुम कहते हो, ‘हम शरमिंदा हैं, हमारी सख़्त रुसवाई हुई है, शर्म के मारे हमने अपने मुँह को ढाँप लिया है। क्योंकि परदेसी रब के घर की मुक़द्दसतरीन जगहों में घुस आए हैं।’


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