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زبور 80:9 - किताबे-मुक़द्दस

9 तूने उसके लिए ज़मीन तैयार की तो वह जड़ पकड़कर पूरे मुल्क में फैल गई।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

9 خُدا نے اُس کے لیٔے زمین تیّار کی، اَور اُس نے جڑ پکڑ لی اَور سارے مُلک میں پھیل گئی۔

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کِتابِ مُقادّس

9 تُو نے اُس کے لِئے جگہ تیّار کی۔ اُس نے گہری جڑ پکڑی اور زمِین کو بھر دِیا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

9 تُو نے اُس کے لئے زمین تیار کی تو وہ جڑ پکڑ کر پورے ملک میں پھیل گئی۔

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زبور 80:9
17 حوالہ جات  

मैंने तुम्हारे आगे ज़ंबूर भेज दिए जिन्होंने अमोरियों के दो बादशाहों को मुल्क से निकाल दिया। यह सब कुछ तुम्हारी अपनी तलवार और कमान से नहीं हुआ बल्कि मेरे ही हाथ से।


एक वक़्त आएगा कि याक़ूब जड़ पकड़ेगा। इसराईल को फूल लग जाएंगे, उस की कोंपलें निकलेंगी और दुनिया उसके फल से भर जाएगी।


तूने उन्हें ज़मीन में लगा दिया, और अब वह जड़ पकड़कर ख़ूब उगने लगे बल्कि फल भी ला रहे हैं। गो तेरा नाम उनकी ज़बान पर रहता है, लेकिन उनका दिल तुझसे दूर है।


यहूदाह के बचे हुए बाशिंदे एक बार फिर जड़ पकड़कर फल लाएँगे।


उसने उन्हें दीगर अक़वाम के ममालिक दिए, और उन्होंने दीगर उम्मतों की मेहनत के फल पर क़ब्ज़ा किया।


वहाँ उसने दाऊद को मर्दुमशुमारी की पूरी रिपोर्ट पेश की। इसराईल में 11,00,000 तलवार चलाने के क़ाबिल अफ़राद थे जबकि यहूदाह के 4,70,000 मर्द थे।


उसके जीते-जी पूरे यहूदाह और इसराईल में सुलह-सलामती रही। शिमाल में दान से लेकर जुनूब में बैर-सबा तक हर एक सलामती से अंगूर की अपनी बेल और अंजीर के अपने दरख़्त के साये में बैठ सकता था।


उस ज़माने में इसराईल और यहूदाह के लोग साहिल की रेत की मानिंद बेशुमार थे। लोगों को खाने और पीने की सब चीज़ें दस्तयाब थीं, और वह ख़ुश थे।


और मैं अपनी क़ौम इसराईल के लिए एक वतन मुहैया करूँगा, पौदे की तरह उन्हें यों लगा दूँगा कि वह जड़ पकड़कर महफ़ूज़ रहेंगे और कभी बेचैन नहीं होंगे। बेदीन क़ौमें उन्हें उस तरह नहीं दबाएँगी जिस तरह माज़ी में किया करती थीं,


उन्होंने अपनी ही तलवार के ज़रीए मुल्क पर क़ब्ज़ा नहीं किया, अपने ही बाज़ू से फ़तह नहीं पाई बल्कि तेरे दहने हाथ, तेरे बाज़ू और तेरे चेहरे के नूर ने यह सब कुछ किया। क्योंकि वह तुझे पसंद थे।


उसने गोडी करते करते उसमें से तमाम पत्थर निकाल दिए, फिर बेहतरीन अंगूर की क़लमें लगाईं। बीच में उसने मीनार खड़ा किया ताकि उस की सहीह चौकीदारी कर सके। साथ साथ उसने अंगूर का रस निकालने के लिए पत्थर में हौज़ तराश लिया। फिर वह पहली फ़सल का इंतज़ार करने लगा। बड़ी उम्मीद थी कि अच्छे मीठे अंगूर मिलेंगे। लेकिन अफ़सोस! जब फ़सल पक गई तो छोटे और खट्टे अंगूर ही निकले थे।


उस दिन कहा जाएगा, “अंगूर का कितना ख़ूबसूरत बाग़ है! उस की तारीफ़ में गीत गाओ!


पहले तू अंगूर की मख़सूस और क़ाबिले-एतमाद नसल की पनीरी थी जिसे मैंने ख़ुद ज़मीन में लगाया। तो यह क्या हुआ कि तू बिगड़कर जंगली बेल बन गई?


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