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زبور 79:5 - किताबे-मुक़द्दस

5 ऐ रब, कब तक? क्या तू हमेशा तक ग़ुस्से होगा? तेरी ग़ैरत कब तक आग की तरह भड़कती रहेगी?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

5 اَے یَاہوِہ، کب تک؟ کیا خُدا ہمیشہ تک خفا رہیں گے؟ خُدا کی غیرت کب تک آگ کی طرح بھڑکتی رہے گی؟

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کِتابِ مُقادّس

5 اَے خُداوند! کب تک؟ کیا تُو ہمیشہ کے لِئے ناراض رہے گا؟ کیا تیری غَیرت آگ کی طرح بھڑکتی رہے گی؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

5 اے رب، کب تک؟ کیا تُو ہمیشہ تک غصے ہو گا؟ تیری غیرت کب تک آگ کی طرح بھڑکتی رہے گی؟

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زبور 79:5
21 حوالہ جات  

ऐ रब, कब तक? क्या तू अपने आपको हमेशा तक छुपाए रखेगा? क्या तेरा क़हर अबद तक आग की तरह भड़कता रहेगा?


क्या तू हमेशा तक हमसे ग़ुस्से रहेगा? क्या तू अपना क़हर पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रखेगा?


आसफ़ का ज़बूर। हिकमत का गीत। ऐ अल्लाह, तूने हमें हमेशा के लिए क्यों रद्द किया है? अपनी चरागाह की भेड़ों पर तेरा क़हर क्यों भड़कता रहता है?


चुनाँचे रब फ़रमाता है, “अब मेरे इंतज़ार में रहो, उस दिन के इंतज़ार में जब मैं शिकार करने के लिए उठूँगा। क्योंकि मैंने अक़वाम को जमा करने का फ़ैसला किया है। मैं ममालिक को इकट्ठा करके उन पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करूँगा। तब वह मेरे सख़्त क़हर का निशाना बन जाएंगे, पूरी दुनिया मेरी ग़ैरत की आग से भस्म हो जाएगी।


रब कभी भी उसे मुआफ़ करने पर आमादा नहीं होगा बल्कि वह उसे अपने ग़ज़ब और ग़ैरत का निशाना बनाएगा। इस किताब में दर्ज तमाम लानतें उस पर आएँगी, और रब दुनिया से उसका नामो-निशान मिटा देगा।


इसलिए रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि मैंने बड़ी ग़ैरत से इन बाक़ी अक़वाम की सरज़निश की है, ख़ासकर अदोम की। क्योंकि वह मेरी क़ौम का नुक़सान देखकर शादियाना बजाने लगीं और अपनी हिक़ारत का इज़हार करके मेरे मुल्क पर क़ब्ज़ा किया ताकि उस की चरागाह को लूट लें।


ऐ रब, लशकरों के ख़ुदा, तेरा ग़ज़ब कब तक भड़कता रहेगा, हालाँकि तेरी क़ौम तुझसे इल्तिजा कर रही है?


उन्होंने ऊँची आवाज़ से चिल्लाकर कहा, “ऐ क़ादिरे-मुतलक़, क़ुद्दूस और सच्चे रब, कितनी देर और लगेगी? तू कब तक ज़मीन के बाशिंदों की अदालत करके हमारे शहीद होने का इंतक़ाम न लेगा?”


जब रब का ग़ज़ब नाज़िल होगा तो न उनका सोना, न चाँदी उन्हें बचा सकेगी। उस की ग़ैरत पूरे मुल्क को आग की तरह भस्म कर देगी। वह मुल्क के तमाम बाशिंदों को हलाक करेगा, हाँ उनका अंजाम हौलनाक होगा।


ऐ रब, तुझ जैसा ख़ुदा कहाँ है? तू ही गुनाहों को मुआफ़ कर देता, तू ही अपनी मीरास के बचे हुओं के जरायम से दरगुज़र करता है। तू हमेशा तक ग़ुस्से नहीं रहता बल्कि शफ़क़त पसंद करता है।


ऐ रब, हद से ज़्यादा हमसे नाराज़ न हो! हमारे गुनाह तुझे हमेशा तक याद न रहें। ज़रा इसका लिहाज़ कर कि हम सब तेरी क़ौम हैं।


न वह हमेशा डाँटता रहेगा, न अबद तक नाराज़ रहेगा।


क्योंकि मेरे ग़ुस्से से आग भड़क उठी है जो पाताल की तह तक पहुँचेगी और ज़मीन और उस की पैदावार हड़प करके पहाड़ों की बुनियादों को जला देगी।


अपने अजनबी माबूदों से उन्होंने उस की ग़ैरत को जोश दिलाया, अपने घिनौने बुतों से उसे ग़ुस्सा दिलाया।


ऐ रब, वापस आकर मेरी जान को बचा। अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे छुटकारा दे।


तूने उन्हें आँसुओं की रोटी खिलाई और आँसुओं का प्याला ख़ूब पिलाया।


याद रहे कि मेरी ज़िंदगी कितनी मुख़तसर है, कि तूने तमाम इनसान कितने फ़ानी ख़लक़ किए हैं।


या क्या तूने हमें हतमी तौर पर मुस्तरद कर दिया है? क्या तेरा हम पर ग़ुस्सा हद से ज़्यादा बढ़ गया है?।


तब रब का फ़रिश्ता बोला, “ऐ रब्बुल-अफ़वाज, अब तू 70 सालों से यरूशलम और यहूदाह की आबादियों से नाराज़ रहा है। तू कब तक उन पर रहम न करेगा?”


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