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زبور 6:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 ऐ रब, वापस आकर मेरी जान को बचा। अपनी शफ़क़त की ख़ातिर मुझे छुटकारा दे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 اَے یَاہوِہ، توجّہ فرمائیں اَور مُجھے رِہائی بخشیں؛ اَپنی لافانی مَحَبّت کے باعث مُجھے رِہائی بخشیں۔

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کِتابِ مُقادّس

4 لَوٹ اَے خُداوند! میری جان کو چُھڑا۔ اپنی شفقت کی خاطِر مُجھے بچا لے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 اے رب، واپس آ کر میری جان کو بچا۔ اپنی شفقت کی خاطر مجھے چھٹکارا دے۔

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زبور 6:4
20 حوالہ جات  

ऐ मेरे ख़ुदा, कान लगाकर मेरी सुन! अपनी आँखें खोल! उस शहर के खंडरात पर नज़र कर जिस पर तेरे ही नाम का ठप्पा लगा है। हम इसलिए तुझसे इल्तिजाएँ नहीं कर रहे कि हम रास्तबाज़ हैं बल्कि इसलिए कि तू निहायत मेहरबान है।


ऐ रब, उठ और उनका सामना कर, उन्हें ज़मीन पर पटख़ दे! अपनी तलवार से मेरी जान को बेदीनों से बचा।


अपने बापदादा के ज़माने से लेकर आज तक तुमने मेरे अहकाम से दूर रहकर उन पर ध्यान नहीं दिया। रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है कि मेरे पास वापस आओ! तब मैं भी तुम्हारे पास वापस आऊँगा। लेकिन तुम एतराज़ करते हो, ‘हम क्यों वापस आएँ, हमसे क्या सरज़द हुआ है?’


रब तुझे हर नुक़सान से बचाएगा, वह तेरी जान को महफ़ूज़ रखेगा।


तब मैंने रब का नाम पुकारा, “ऐ रब, मेहरबानी करके मुझे बचा!”


ऐ रब, दुबारा हमारी तरफ़ रुजू फ़रमा! तू कब तक दूर रहेगा? अपने ख़ादिमों पर तरस खा!


ऐ लशकरों के ख़ुदा, हमारी तरफ़ दुबारा रुजू फ़रमा! आसमान से नज़र डालकर हालात पर ध्यान दे। इस बेल की देख-भाल कर।


मेरी जान को तलवार से बचा, मेरी ज़िंदगी को कुत्ते के पंजे से छुड़ा।


ताकि हम उसके जलाली फ़ज़ल की तमजीद करें, उस मुफ़्त नेमत के लिए जो उसने हमें अपने प्यारे फ़रज़ंद में दे दी।


यक़ीनन यह तलख़ तजरबा मेरी बरकत का बाइस बन गया। तेरी मुहब्बत ने मेरी जान को क़ब्र से महफ़ूज़ रखा, तूने मेरे तमाम गुनाहों को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया है।


ऐ रब, मेरी जान को झूटे होंटों और फ़रेबदेह ज़बान से बचा।


क्योंकि ऐ रब, तूने मेरी जान को मौत से, मेरी आँखों को आँसू बहाने से और मेरे पाँवों को फिसलने से बचाया है।


क्योंकि तेरी मुझ पर शफ़क़त अज़ीम है, तूने मेरी जान को पाताल की गहराइयों से छुड़ाया है।


लेकिन ऐ रब, मेरी तुझसे दुआ है कि मैं तुझे दुबारा मंज़ूर हो जाऊँ। ऐ अल्लाह, अपनी अज़ीम शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी सुन, अपनी यक़ीनी नजात के मुताबिक़ मुझे बचा।


ऐ रब, मेरी जवानी के गुनाहों और मेरी बेवफ़ा हरकतों को याद न कर बल्कि अपनी भलाई की ख़ातिर और अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मेरा ख़याल रख।


मेरी जान कब तक परेशानियों में मुब्तला रहे, मेरा दिल कब तक रोज़ बरोज़ दुख उठाता रहे? मेरा दुश्मन कब तक मुझ पर ग़ालिब रहेगा?


ऐ अल्लाह, हरीफ़ कब तक लान-तान करेगा, दुश्मन कब तक तेरे नाम की तकफ़ीर करेगा?


ऐ रब, कब तक? क्या तू हमेशा तक ग़ुस्से होगा? तेरी ग़ैरत कब तक आग की तरह भड़कती रहेगी?


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