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زبور 137:1 - किताबे-मुक़द्दस

1 जब सिय्यून की याद आई तो हम बाबल की नहरों के किनारे ही बैठकर रो पड़े।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

1 جَب ہمیں صِیّونؔ کی یاد آئی تو ہم بابیل کی دریاؤں کے کنارے پر بیٹھ کر خُوب رُوئے۔

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کِتابِ مُقادّس

1 ہم بابل کی ندیوں پر بَیٹھے اور صِیُّون کو یاد کر کے روئے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

1 جب صیون کی یاد آئی تو ہم بابل کی نہروں کے کنارے ہی بیٹھ کر رو پڑے۔

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زبور 137:1
27 حوالہ جات  

जब मैं यानी इमाम हिज़क़ियेल बिन बूज़ी तीस साल का था तो मैं यहूदाह के जिलावतनों के साथ मुल्के-बाबल के दरिया किबार के किनारे ठहरा हुआ था। यहूयाकीन बादशाह को जिलावतन हुए पाँच साल हो गए थे। चौथे महीने के पाँचवें दिन आसमान खुल गया और अल्लाह ने मुझ पर मुख़्तलिफ़ रोयाएँ ज़ाहिर कीं। उस वक़्त रब मुझसे हमकलाम हुआ, और उसका हाथ मुझ पर आ ठहरा।


चलते चलते मैं दरियाए-किबार की आबादी तल-अबीब में रहनेवाले जिलावतनों के पास पहुँच गया। मैं उनके दरमियान बैठ गया। सात दिन तक मेरी हालत गुमसुम रही।


जब वह यरूशलम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देखकर रो पड़ा


आँसू मेरी आँखों से टपक टपककर नदियाँ बन गए हैं, मैं इसलिए रो रहा हूँ कि मेरी क़ौम तबाह हो गई है।


लोगों के दिल रब को पुकारते हैं। ऐ सिय्यून बेटी की फ़सील, तेरे आँसू दिन-रात बहते बहते नदी बन जाएँ। न इससे बाज़ आ, न अपनी आँखों को रोने से रुकने दे!


इसलिए मैं रो रही हूँ, मेरी आँखों से आँसू टपकते रहते हैं। क्योंकि क़रीब कोई नहीं है जो मुझे तसल्ली देकर मेरी जान को तरो-ताज़ा करे। मेरे बच्चे तबाह हैं, क्योंकि दुश्मन ग़ालिब आ गया है।”


जब दीगर लोग रंगरलियों में अपने दिल बहलाते थे तो मैं कभी उनके साथ न बैठा, कभी उनकी बातों से लुत्फ़अंदोज़ न हुआ। नहीं, तेरा हाथ मुझ पर था, इसलिए मैं दूसरों से दूर ही बैठा रहा। क्योंकि तूने मेरे दिल को क़ौम पर क़हर से भर दिया था।


पहले हालात याद करके मैं अपने सामने अपने दिल की आहो-ज़ारी उंडेल देता हूँ। कितना मज़ा आता था जब हमारा जुलूस निकलता था, जब मैं हुजूम के बीच में ख़ुशी और शुक्रगुज़ारी के नारे लगाते हुए अल्लाह की सुकूनतगाह की जानिब बढ़ता जाता था। कितना शोर मच जाता था जब हम जशन मनाते हुए घुमते-फिरते थे।


और कहा, “शहनशाह अबद तक जीता रहे! मैं किस तरह ख़ुश हो सकता हूँ? जिस शहर में मेरे बापदादा को दफ़नाया गया है वह मलबे का ढेर है, और उसके दरवाज़े राख हो गए हैं।”


हम पहले महीने के 12वें दिन अहावा नहर से यरूशलम के लिए रवाना हुए। अल्लाह का शफ़ीक़ हाथ हम पर था, और उसने हमें रास्ते में दुश्मनों और डाकुओं से महफ़ूज़ रखा।


वहीं अहावा की नहर के पास ही मैंने एलान किया कि हम सब रोज़ा रखकर अपने आपको अपने ख़ुदा के सामने पस्त करें और दुआ करें कि वह हमें हमारे बाल-बच्चों और सामान के साथ सलामती से यरूशलम पहुँचाए।


और मैं अपने दो गवाहों को इख़्तियार दूँगा, और वह टाट ओढ़कर 1,260 दिनों के दौरान नबुव्वत करेंगे।”


चुनाँचे मैंने रब अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू किया ताकि अपनी दुआ और इल्तिजाओं से उस की मरज़ी दरियाफ़्त करूँ। साथ साथ मैंने रोज़ा रखा, टाट का लिबास ओढ़ लिया और अपने सर पर राख डाल ली।


अपने शहर की औरतों से दुश्मन का सुलूक देखकर मेरा दिल छलनी हो रहा है।


“ऐ यरूशलम को प्यार करनेवालो, सब उसके साथ ख़ुशी मनाओ! ऐ शहर पर मातम करनेवालो, सब उसके साथ शादियाना बजाओ!


सुनो! मेरी क़ौम दूर-दराज़ मुल्क से चीख़ चीख़कर मदद के लिए आवाज़ दे रही है। लोग पूछते हैं, “क्या रब सिय्यून में नहीं है, क्या यरूशलम का बादशाह अब से वहाँ सुकूनत नहीं करता?” “सुनो, उन्होंने अपने मुजस्समों और बेकार अजनबी बुतों की पूजा करके मुझे क्यों तैश दिलाया?”


“अब वह लँगोटी ले जो तूने ख़रीदकर बाँध ली है। दरियाए-फ़ुरात के पास जाकर उसे किसी चट्टान की दराड़ में छुपा दे।”


ऐ बाबल बेटी, तू गहरे पानी के पास बसती और निहायत दौलतमंद हो गई है। लेकिन ख़बरदार! तेरा अंजाम क़रीब ही है, तेरी ज़िंदगी का धागा कट गया है।


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