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زبور 107:33 - किताबे-मुक़द्दस

33 कई जगहों पर वह दरियाओं को रेगिस्तान में और चश्मों को प्यासी ज़मीन में बदल देता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

33 خُدا نے دریاؤں کو بیابان میں بدل دیا، اَور بہتے چشموں کو خشک زمین بنا دیا،

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کِتابِ مُقادّس

33 وہ دریاؤں کو بیابان بنا دیتا ہے اور پانی کے چشموں کو خُشک زمِین۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

33 کئی جگہوں پر وہ دریاؤں کو ریگستان میں اور چشموں کو پیاسی زمین میں بدل دیتا ہے۔

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زبور 107:33
16 حوالہ جات  

जब मैं आया तो कोई नहीं था। क्या वजह? जब मैंने आवाज़ दी तो जवाब देनेवाला कोई नहीं था। क्यों? क्या मैं फ़िद्या देकर तुम्हें छुड़ाने के क़ाबिल न था? क्या मेरी इतनी ताक़त नहीं कि तुम्हें बचा सकूँ? मेरी तो एक ही धमकी से समुंदर ख़ुश्क हो जाता और दरिया रेगिस्तान बन जाते हैं। तब उनकी मछलियाँ पानी से महरूम होकर गल जाती हैं, और उनकी बदबू चारों तरफ़ फैल जाती है।


मैं पहाड़ों और पहाड़ियों को तबाह करके उनकी तमाम हरियाली झुलसा दूँगा। दरिया ख़ुश्क ज़मीन बन जाएंगे, और जोहड़ सूख जाएंगे।


वह अपना हाथ शिमाल की तरफ़ भी बढ़ाकर असूर को तबाह करेगा। नीनवा वीरानो-सुनसान होकर रेगिस्तान जैसा ख़ुश्क हो जाएगा।


इसलिए रब्बुल-अफ़वाज जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है, “मेरी हयात की क़सम, मोआब और अम्मोन के इलाक़े सदूम और अमूरा की मानिंद बन जाएंगे। उनमें ख़ुदरौ पौदे और नमक के गढ़े ही पाए जाएंगे, और वह अबद तक वीरानो-सुनसान रहेंगे। तब मेरी क़ौम का बचा हुआ हिस्सा उन्हें लूटकर उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेगा।”


वह समुंदर को डाँटता तो वह सूख जाता, उसके हुक्म पर तमाम दरिया ख़ुश्क हो जाते हैं। तब बसन और करमिल की शादाब हरियाली मुरझा जाती और लुबनान के फूल कुमला जाते हैं।


जंगली जानवर भी हाँपते हाँपते तेरे इंतज़ार में हैं, क्योंकि नदियाँ सूख गई हैं, और खुले मैदान की चरागाहें नज़रे-आतिश हो गई हैं।


मैं दरियाए-नील की शाख़ों को ख़ुश्क करूँगा और मिसर को फ़रोख़्त करके शरीर आदमियों के हवाले कर दूँगा। परदेसियों के ज़रीए मैं मुल्क और जो कुछ भी उसमें है तबाह कर दूँगा। यह मेरा, रब का फ़रमान है।


अमीर अपने नौकरों को पानी भरने भेजते हैं, लेकिन हौज़ों के पास पहुँचकर पता चलता है कि पानी नहीं है, इसलिए वह ख़ाली हाथ वापस आ जाते हैं। शरमिंदगी और नदामत के मारे वह अपने सरों को ढाँप लेते हैं।


मैं ही गहरे समुंदर को हुक्म देता हूँ, ‘सूख जा, मैं तेरी गहराइयों को ख़ुश्क करता हूँ।’


एक जगह तूने चश्मे और नदियाँ फूटने दीं, दूसरी जगह कभी न सूखनेवाले दरिया सूखने दिए।


अब अख़ियब ने अबदियाह को हुक्म दिया, “पूरे मुल्क में से गुज़रकर तमाम चश्मों और वादियों का मुआयना करें। शायद कहीं कुछ घास मिल जाए जो हम अपने घोड़ों और ख़च्चरों को खिलाकर उन्हें बचा सकें। ऐसा न हो कि हमें खाने की क़िल्लत के बाइस कुछ जानवरों को ज़बह करना पड़े।”


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