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زبور 1:2 - किताबे-मुक़द्दस

2 बल्कि रब की शरीअत से लुत्फ़अंदोज़ होता और दिन-रात उसी पर ग़ौरो-ख़ौज़ करता रहता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

2 بَلکہ یَاہوِہ کے آئین میں اُس کی مسرّت ہے، اَورجو اُس کی شَریعت پر دِن رات غوروخوض کرتا رہتاہے۔

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کِتابِ مُقادّس

2 بلکہ خُداوند کی شرِیعت میں اُس کی خُوشنُودی ہے اور اُسی کی شرِیعت پر دِن رات اُس کا دِھیان رہتا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

2 بلکہ رب کی شریعت سے لطف اندوز ہوتا اور دن رات اُسی پر غور و خوض کرتا رہتا ہے۔

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زبور 1:2
24 حوالہ جات  

जो बातें इस शरीअत की किताब में लिखी हैं वह तेरे मुँह से न हटें। दिन-रात उन पर ग़ौर करता रह ताकि तू एहतियात से इसकी हर बात पर अमल कर सके। फिर तू हर काम में कामयाब और ख़ुशहाल होगा।


अगर तेरी शरीअत मेरी ख़ुशी न होती तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो गया होता।


मैंने तेरा कलाम अपने दिल में महफ़ूज़ रखा है ताकि तेरा गुनाह न करूँ।


हाँ, अपने बातिन में तो मैं ख़ुशी से अल्लाह की शरीअत को मानता हूँ।


ऐ रब, लशकरों के ख़ुदा, जब भी तेरा कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ तो मैंने उसे हज़म किया, और मेरा दिल उससे ख़ुशो-ख़ुर्रम हुआ। क्योंकि मुझ पर तेरे ही नाम का ठप्पा लगा है।


अपने अहकाम की राह पर मेरी राहनुमाई कर, क्योंकि यही मैं पसंद करता हूँ।


रब की हम्द हो! मुबारक है वह जो अल्लाह का ख़ौफ़ मानता और उसके अहकाम से बहुत लुत्फ़अंदोज़ होता है।


मेरी बात उसे पसंद आए! मैं रब से कितना ख़ुश हूँ!


ऐ मेरे ख़ुदा, मैं ख़ुशी से तेरी मरज़ी पूरी करता हूँ, तेरी शरीअत मेरे दिल में टिक गई है।”


मुबारक हैं वह जिनका चाल-चलन बेइलज़ाम है, जो रब की शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारते हैं।


क्योंकि अल्लाह से मुहब्बत से मुराद यह है कि हम उसके अहकाम पर अमल करें। और उसके अहकाम हमारे लिए बोझ का बाइस नहीं हैं,


मैं उसके होंटों के फ़रमान से बाज़ नहीं आया बल्कि अपने दिल में ही उसके मुँह की बातें महफ़ूज़ रखी हैं।


इन बातों को फ़रोग़ दें और इनके पीछे लगे रहें ताकि आपकी तरक़्क़ी सबको नज़र आए।


जो शरीअत तेरे मुँह से सादिर हुई है वह मुझे सोने-चाँदी के हज़ारों सिक्कों से ज़्यादा पसंद है।


अब वह बेवा की हैसियत से 84 साल की हो चुकी थी। वह कभी बैतुल-मुक़द्दस को नहीं छोड़ती थी, बल्कि दिन-रात अल्लाह को सिजदा करती, रोज़ा रखती और दुआ करती थी।


मैं आपके लिए ख़ुदा का शुक्र करता हूँ जिसकी ख़िदमत मैं अपने बापदादा की तरह साफ़ ज़मीर से करता हूँ। दिन-रात मैं लगातार आपको अपनी दुआओं में याद रखता हूँ।


भाइयो, बेशक आपको याद है कि हमने कितनी सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की। दिन-रात हम काम करते रहे ताकि अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाते वक़्त किसी पर बोझ न बनें।


अगर उसने आख़िरकार इनसाफ़ किया तो क्या अल्लाह अपने चुने हुए लोगों का इनसाफ़ नहीं करेगा जो दिन-रात उसे मदद के लिए पुकारते हैं? क्या वह उनकी बात मुलतवी करता रहेगा?


क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : महलत लअन्नोत। हैमान इज़राही का हिकमत का गीत। ऐ रब, ऐ मेरी नजात के ख़ुदा, दिन-रात मैं तेरे हुज़ूर चीख़ता-चिल्लाता हूँ।


एक शाम वह निकलकर खुले मैदान में अपनी सोचों में मगन टहल रहा था कि अचानक ऊँट उस की तरफ़ आते हुए नज़र आए।


वजह यह थी कि अज़रा ने अपने आपको रब की शरीअत की तफ़तीश करने, उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने और इसराईलियों को उसके अहकाम और हिदायात की तालीम देने के लिए वक़्फ़ किया था।


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