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امثال 28:21 - किताबे-मुक़द्दस

21 जानिबदारी बुरी बात है, लेकिन इनसान रोटी का टुकड़ा हासिल करने के लिए मुजरिम बन जाता है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

21 طرفداری کرنا اَچھّا نہیں۔ پھر بھی اِنسان روٹی کے ٹکڑے کی خاطِر یہ ظُلم کرتا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

21 طرف داری کرنا خُوب نہیں اور نہ یہ کہ آدمی روٹی کے ٹُکڑے کے لِئے گُناہ کرے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

21 جانب داری بُری بات ہے، لیکن انسان روٹی کا ٹکڑا حاصل کرنے کے لئے مجرم بن جاتا ہے۔

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امثال 28:21
11 حوالہ جات  

मेरी क़ौम के दरमियान ही तुमने मेरी बेहुरमती की, और यह सिर्फ़ चंद एक मुट्ठी-भर जौ और रोटी के दो-चार टुकड़ों के लिए। अफ़सोस, मेरी क़ौम झूट सुनना पसंद करती है। इससे फ़ायदा उठाकर तुमने उसे झूट पेश करके उन्हें मार डाला जिन्हें मरना नहीं था और उन्हें ज़िंदा छोड़ा जिन्हें ज़िंदा नहीं रहना था।


ज़ैल में दानिशमंदों की मज़ीद कहावतें क़लमबंद हैं। अदालत में जानिबदारी दिखाना बुरी बात है।


बेदीन की जानिबदारी करके रास्तबाज़ का हक़ मारना ग़लत है।


रिश्वत न लेना, क्योंकि रिश्वत देखनेवाले को अंधा कर देती है और उस की बात बनने नहीं देती जो हक़ पर है।


अगर अकसरियत ग़लत काम कर रही हो तो उसके पीछे न हो लेना। अदालत में गवाही देते वक़्त अकसरियत के साथ मिलकर ऐसी बात न करना जिससे ग़लत फ़ैसला किया जाए।


लालच के सबब से यह उस्ताद आपको फ़रज़ी कहानियाँ सुनाकर आपकी लूट-खसोट करेंगे। लेकिन अल्लाह ने बड़ी देर से उन्हें मुजरिम ठहराया, और उसका फ़ैसला सुस्तरफ़्तार नहीं है। हाँ, उनका मुंसिफ़ ऊँघ नहीं रहा बल्कि उन्हें हलाक करने के लिए तैयार खड़ा है।


क्योंकि ऐसे लोग हमारे ख़ुदावंद मसीह की ख़िदमत नहीं कर रहे बल्कि अपने पेट की। वह अपनी मीठी और चिकनी-चुपड़ी बातों से सादालौह लोगों के दिलों को धोका देते हैं।


दोनों हाथ ग़लत काम करने में एक जैसे माहिर हैं। हुक्मरान और क़ाज़ी रिश्वत खाते, बड़े लोग मुतलव्विनमिज़ाजी से कभी यह, कभी वह तलब करते हैं। सब मिलकर साज़िशें करने में मसरूफ़ रहते हैं।


रब फ़रमाता है, “ऐ नबियो, तुम मेरी क़ौम को भटका रहे हो। अगर तुम्हें कुछ खिलाया जाए तो तुम एलान करते हो कि अमनो-अमान होगा। लेकिन जो तुम्हें कुछ न खिलाए उस पर तुम जिहाद का फ़तवा देते हो।


यह लोग शराब की महफ़िल से फ़ारिग़ होकर ज़िनाकारी में लग जाते हैं। वह नाजायज़ मुहब्बत करते करते कभी नहीं थकते। लेकिन इसका अज्र उनकी अपनी बेइज़्ज़ती है।


अदालत करते वक़्त जानिबदारी न करना। छोटे और बड़े की बात सुनकर दोनों के साथ एक जैसा सुलूक करना। किसी से मत डरना, क्योंकि अल्लाह ही ने तुम्हें अदालत करने की ज़िम्मादारी दी है। अगर किसी मामले में फ़ैसला करना तुम्हारे लिए मुश्किल हो तो उसे मुझे पेश करो। फिर मैं ही उसका फ़ैसला करूँगा।”


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