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امثال 27:22 - किताबे-मुक़द्दस

22 अगर अहमक़ को अनाज की तरह ओखली और मूसल से कूटा भी जाए तो भी उस की हमाक़त दूर नहीं हो जाएगी।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

22 چاہے تُم احمق کو اوکھلی میں ڈال کر کُوٹو، جَیسے اناج کو موسل سے کُوٹتے ہیں، تو بھی اُس کی حماقت اُس سے دُور نہ ہوگی۔

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کِتابِ مُقادّس

22 اگرچہ تُو احمق کو اناج کے ساتھ اُکھلی میں ڈال کر مُوسل سے کُوٹے تَو بھی اُس کی حماقت اُس سے کبھی جُدا نہ ہو گی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

22 اگر احمق کو اناج کی طرح اُوکھلی اور موسل سے کوٹا بھی جائے توبھی اُس کی حماقت دُور نہیں ہو جائے گی۔

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امثال 27:22
14 حوالہ جات  

ऐ रब, तेरी आँखें दियानतदारी देखना चाहती हैं। तूने उन्हें मारा, लेकिन उन्हें दुख न हुआ। तूने उन्हें कुचल डाला, लेकिन वह तरबियत पाने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने अपने चेहरे को पत्थर से कहीं ज़्यादा सख़्त बनाकर तौबा करने से इनकार किया है।


तू कहेगा, “मेरी पिटाई हुई लेकिन दर्द महसूस न हुआ, मुझे मारा गया लेकिन मालूम न हुआ। मैं कब जाग उठूँगा ताकि दुबारा शराब की तरफ़ रुख़ कर सकूँ?”


अब तुम्हें मज़ीद कहाँ पीटा जाए? तुम्हारी ज़िद तो मज़ीद बढ़ती जा रही है गो पूरा सर ज़ख़मी और पूरा दिल बीमार है।


उस रात मिसर के हर घर में कोई न कोई मर गया। फ़िरौन, उसके ओहदेदार और मिसर के तमाम लोग जाग उठे और ज़ोर ज़ोर से रोने और चीख़ने लगे।


जब मिसर के बादशाह को इत्तला दी गई कि इसराईली हिजरत कर गए हैं तो उसने और उसके दरबारियों ने अपना ख़याल बदलकर कहा, “हमने क्या किया है? हमने उन्हें जाने दिया है, और अब हम उनकी ख़िदमत से महरूम हो गए हैं।”


दुश्मन ने डींग मारकर कहा, ‘मैं उनका पीछा करके उन्हें पकड़ लूँगा, मैं उनका लूटा हुआ माल तक़सीम करूँगा। मेरी लालची जान उनसे सेर हो जाएगी, मैं अपनी तलवार खींचकर उन्हें हलाक करूँगा।’


जो अहमक़ अपनी हमाक़त दोहराए वह अपनी क़ै के पास वापस आनेवाले कुत्ते की मानिंद है।


क्या काला आदमी अपनी जिल्द का रंग या चीता अपनी खाल के धब्बे बदल सकता है? हरगिज़ नहीं! तुम भी बदल नहीं सकते। तुम ग़लत काम के इतने आदी हो गए हो कि सहीह काम कर ही नहीं सकते।


साऊल को इस बात की ख़बर मिली तो उसने मज़ीद आदमियों को रामा भेज दिया। लेकिन वह भी वहाँ पहुँचते ही नबुव्वत करने लगे। साऊल ने तीसरी बार आदमियों को भेज दिया, लेकिन यही कुछ उनके साथ भी हुआ।


इन वाक़ियात के बावुजूद यरुबियाम अपनी शरीर हरकतों से बाज़ न आया। आम लोगों को इमाम बनाने का सिलसिला जारी रहा। जो कोई भी इमाम बनना चाहता उसे वह ऊँची जगहों के मंदिरों में ख़िदमत करने के लिए मख़सूस करता था।


दानिशमंदों का अज्र दौलत का ताज है जबकि अहमक़ों का अज्र हमाक़त ही है।


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