जब यह लोग ख़ुदावंद की मुहब्बत को याद करनेवाले रिफ़ाक़ती खानों में शरीक होते हैं तो रिफ़ाक़त के लिए धब्बे बन जाते हैं। यह डरे बग़ैर खाना खा खाकर उससे महज़ूज़ होते हैं। यह ऐसे चरवाहे हैं जो सिर्फ़ अपनी गल्लाबानी करते हैं। यह ऐसे बादल हैं जो हवाओं के ज़ोर से चलते तो हैं लेकिन बरसते नहीं। यह सर्दियों के मौसम में ऐसे दरख़्तों की मानिंद हैं जो दो लिहाज़ से मुरदा हैं। वह फल नहीं लाते और जड़ से उखड़े हुए हैं।
