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عوبدیاہ 1:14 - किताबे-मुक़द्दस

14 कितनी बुरी बात थी कि तू शहर से निकलनेवाले रास्तों पर ताक में बैठ गया ताकि वहाँ से भागनेवालों को तबाह करे और बचे हुओं को दुश्मन के हवाले करे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

14 تمہارے لئے یہ مُناسب نہ تھا کہ اَپنی جان بچا کر فرار ہونے والوں کا سَر قلم کرنے کو چوراہوں پر کھڑے ہوتے، اَور اُن کی مُصیبت کے دِنوں میں زندہ بچے ہوؤں کو اُن کے دُشمنوں کے حوالہ کرتے۔

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کِتابِ مُقادّس

14 تُجھے لازِم نہ تھا کہ گھاٹی میں کھڑا ہو کر اُس کے فراریوں کو قتل کرتا اور اُس دُکھ کے دِن میں اُس کے باقی ماندہ لوگوں کو حوالہ کرتا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

14 کتنی بُری بات تھی کہ تُو شہر سے نکلنے والے راستوں پر تاک میں بیٹھ گیا تاکہ وہاں سے بھاگنے والوں کو تباہ کرے اور بچے ہوؤں کو دشمن کے حوالے کرے۔

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عوبدیاہ 1:14
10 حوالہ جات  

तुझे तेरे भाई की बदक़िस्मती पर ख़ुशी नहीं मनानी चाहिए थी। मुनासिब नहीं था कि तू यहूदाह के बाशिंदों की तबाही पर शादियाना बजाता। उनकी मुसीबत देखकर तुझे शेख़ी नहीं मारनी चाहिए थी।


रब फ़रमाता है, “सूर के बाशिंदों ने बार बार गुनाह किया है, इसलिए मैं उन्हें सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ूँगा। क्योंकि उन्होंने बरादराना अहद का लिहाज़ न किया बल्कि पूरी आबादियों को जिलावतन करके अदोम के हवाले कर दिया।


रब फ़रमाता है, “ग़ज़्ज़ा के बाशिंदों ने बार बार गुनाह किया है, इसलिए मैं उन्हें सज़ा दिए बग़ैर नहीं छोड़ूँगा। क्योंकि उन्होंने पूरी आबादियों को जिलावतन करके अदोम के हवाले कर दिया है।


अफ़सोस! वह दिन कितना हौलनाक होगा! उस जैसा कोई नहीं होगा। याक़ूब की औलाद को बड़ी मुसीबत पेश आएगी, लेकिन आख़िरकार उसे रिहाई मिलेगी।’


नबी के पास पहुँचकर उन्होंने हिज़क़ियाह का पैग़ाम सुनाया, “आज हम बड़ी मुसीबत में हैं। सज़ा के इस दिन असूरियों ने हमारी सख़्त बेइज़्ज़ती की है। हमारा हाल दर्दे-ज़ह में मुब्तला उस औरत का-सा है जिसके पेट से बच्चा निकलने को है, लेकिन जो इसलिए नहीं निकल सकता कि माँ की ताक़त जाती रही है।


तूने मुझे दुश्मन के हवाले नहीं किया बल्कि मेरे पाँवों को खुले मैदान में क़ायम कर दिया है।


क्योंकि हमें यह जगह छोड़कर बैतेल जाना है। वहाँ मैं उस ख़ुदा के लिए क़ुरबानगाह बनाऊँगा जिसने मुसीबत के वक़्त मेरी दुआ सुनी। जहाँ भी मैं गया वहाँ वह मेरे साथ रहा है।”


अब वहाँ जाओ जहाँ सड़कें शहर से निकलती हैं और जिससे भी मुलाक़ात हो जाए उसे ज़ियाफ़त के लिए दावत दे देना।’


“हमें कोई मशवरा दे, कोई फ़ैसला पेश कर। हम पर साया डाल ताकि दोपहर की तपती धूप हम पर न पड़े बल्कि रात जैसा अंधेरा हो। मफ़रूरों को छुपा दे, दुश्मन को पनाहगुज़ीनों के बारे में इत्तला न दे।


मोआबी मुहाजिरों को अपने पास ठहरने दे, मोआबी मफ़रूरों के लिए पनाहगाह हो ताकि वह हलाकू के हाथ से बच जाएँ।” लेकिन ज़ालिम का अंजाम आनेवाला है। तबाही का सिलसिला ख़त्म हो जाएगा, और कुचलनेवाला मुल्क से ग़ायब हो जाएगा।


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