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گنتی 5:7 - किताबे-मुक़द्दस

7 लाज़िम है कि वह अपना गुनाह तसलीम करे और उसका पूरा मुआवज़ा दे बल्कि मुतअस्सिरा शख़्स का नुक़सान पूरा करने के अलावा 20 फ़ीसद ज़्यादा दे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

7 اَور اُس نے جو گُناہ کیا ہو وہ اُس کا اقرار کرے اَور کفّارہ کے طور پر اَپنی خطا کے پُورے مُعاوضہ میں اُس کا پانچواں حِصّہ اَور مِلا کر اُس شخص کو دے جِس کا اُس نے قُصُور کیا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

7 تو جو گُناہ اُس نے کِیا ہے وہ اُس کا اِقرار کرے اور اپنی تقصِیر کے مُعاوضہ میں پُورا دام اور اُس میں اُس کا پانچواں حِصّہ اَور مِلا کر اُس شخص کو دے جِس کا اُس نے قصُور کِیا ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

7 لازم ہے کہ وہ اپنا گناہ تسلیم کرے اور اُس کا پورا معاوضہ دے بلکہ متاثرہ شخص کا نقصان پورا کرنے کے علاوہ 20 فیصد زیادہ دے۔

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گنتی 5:7
14 حوالہ جات  

जो इस तरह के किसी गुनाह की बिना पर क़ुसूरवार हो, लाज़िम है कि वह अपना गुनाह तसलीम करे।


यशुअ ने उससे कहा, “बेटा, रब इसराईल के ख़ुदा को जलाल दो और उस की सताइश करो। मुझे बता दो कि तुमने क्या किया। कोई भी बात मुझसे मत छुपाना।”


लेकिन एक वक़्त आएगा कि वह अपने और अपने बापदादा का क़ुसूर मान लेंगे। वह मेरे साथ अपनी बेवफ़ाई और वह मुख़ालफ़त तसलीम करेंगे


लेकिन ज़क्काई ने ख़ुदावंद के सामने खड़े होकर कहा, “ख़ुदावंद, मैं अपने माल का आधा हिस्सा ग़रीबों को दे देता हूँ। और जिससे मैंने नाजायज़ तौर से कुछ लिया है उसे चार गुना वापस करता हूँ।”


जो अपने गुनाह छुपाए वह नाकाम रहेगा, लेकिन जो उन्हें तसलीम करके तर्क करे वह रहम पाएगा।


तब मैंने तेरे सामने अपना गुनाह तसलीम किया, मैं अपना गुनाह छुपाने से बाज़ आया। मैं बोला, “मैं रब के सामने अपने जरायम का इक़रार करूँगा।” तब तूने मेरे गुनाह को मुआफ़ कर दिया। (सिलाह)


गुनाह और क़ुसूर की क़ुरबानी के लिए एक ही उसूल है, जो इमाम क़ुरबानी को पेश करके कफ़्फ़ारा देता है उसको उसका गोश्त मिलता है।


“अगर किसी ने बेईमानी करके ग़ैरइरादी तौर पर रब की मख़सूस और मुक़द्दस चीज़ों के सिलसिले में गुनाह किया हो, ऐसा शख़्स क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर रब को बेऐब और क़ीमत के लिहाज़ से मुनासिब मेंढा या बकरा पेश करे। उस की क़ीमत मक़दिस की शरह के मुताबिक़ मुक़र्रर की जाए।


जितना नुक़सान मक़दिस को हुआ है उतना ही वह दे। इसके अलावा वह मज़ीद 20 फ़ीसद अदा करे। वह उसे इमाम को दे दे और इमाम जानवर को क़ुसूर की क़ुरबानी के तौर पर पेश करके उसका कफ़्फ़ारा दे। यों उसे मुआफ़ी मिल जाएगी।


जिसके सबब से मैं उनके ख़िलाफ़ हुआ और उन्हें उनके दुश्मनों के मुल्क में धकेल दिया था। पहले उनका ख़तना सिर्फ़ ज़ाहिरी तौर पर हुआ था, लेकिन अब उनका दिल आजिज़ हो जाएगा और वह अपने क़ुसूर की क़ीमत अदा करेंगे।


लेकिन अगर वह शख़्स जिसका क़ुसूर किया गया था मर चुका हो और उसका कोई वारिस न हो जो यह मुआवज़ा वसूल कर सके तो फिर उसे रब को देना है। इमाम को यह मुआवज़ा उस मेंढे के अलावा मिलेगा जो क़ुसूरवार अपने कफ़्फ़ारा के लिए देगा।


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