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گنتی 35:30 - किताबे-मुक़द्दस

30 जिस पर क़त्ल का इलज़ाम लगाया गया हो उसे सिर्फ़ इस सूरत में सज़ाए-मौत दी जा सकती है कि कम अज़ कम दो गवाह हों। एक गवाह काफ़ी नहीं है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

30 ” ’اگر کویٔی شخص کسی اِنسان کو مار ڈالے تو اِس قاتل کو گواہوں کی شہادت پر ہی قتل کیا جائے۔ لیکن کسی ایک ہی گواہ کی شہادت پر کویٔی شخص قتل نہ کیا جائے۔

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کِتابِ مُقادّس

30 اگر کوئی کِسی کو مار ڈالے تو قاتِل گواہوں کی شہادت پر قتل کِیا جائے پر ایک گواہ کی شہادت سے کوئی مارا نہ جائے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

30 جس پر قتل کا الزام لگایا گیا ہو اُسے صرف اِس صورت میں سزائے موت دی جا سکتی ہے کہ کم از کم دو گواہ ہوں۔ ایک گواہ کافی نہیں ہے۔

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گنتی 35:30
14 حوالہ جات  

जो मूसा की शरीअत रद्द करता है उस पर रहम नहीं किया जा सकता बल्कि अगर दो या इससे ज़ायद लोग इस जुर्म की गवाही दें तो उसे सज़ाए-मौत दी जाए।


लेकिन अगर वह न माने तो एक या दो और लोगों को अपने साथ ले जा ताकि तुम्हारी हर बात की दो या तीन गवाहों से तसदीक़ हो जाए।


तू किसी को एक ही गवाह के कहने पर क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता। जो भी जुर्म सरज़द हुआ है, कम अज़ कम दो या तीन गवाहों की ज़रूरत है। वरना तू उसे क़ुसूरवार नहीं ठहरा सकता।


अब मैं तीसरी दफ़ा आपके पास आ रहा हूँ। कलामे-मुक़द्दस के मुताबिक़ लाज़िम है कि हर इलज़ाम की तसदीक़ दो या तीन गवाहों से की जाए।


जब किसी बुज़ुर्ग पर इलज़ाम लगाया जाए तो यह बात सिर्फ़ इस सूरत में मानें कि दो या इससे ज़्यादा गवाह इसकी तसदीक़ करें।


और मैं अपने दो गवाहों को इख़्तियार दूँगा, और वह टाट ओढ़कर 1,260 दिनों के दौरान नबुव्वत करेंगे।”


“क्या हमारी शरीअत किसी पर यों फ़ैसला देने की इजाज़त देती है? नहीं, लाज़िम है कि उसे पहले अदालत में पेश किया जाए ताकि मालूम हो जाए कि उससे क्या कुछ सरज़द हुआ है।”


अगर किसी ने किसी को जान-बूझकर लोहे, पत्थर या लकड़ी की किसी चीज़ से मार डाला हो वह क़ातिल है और उसे सज़ाए-मौत देनी है।


जो किसी को जान-बूझकर इतना सख़्त मारता हो कि वह मर जाए तो उसे ज़रूर सज़ाए-मौत देना है।


जिसने किसी को मार डाला है उसे सज़ाए-मौत दी जाए।


क़ातिल को ज़रूर सज़ाए-मौत देना। ख़ाह वह इससे बचने के लिए कोई भी मुआवज़ा दे उसे आज़ाद न छोड़ना बल्कि सज़ाए-मौत देना।


‘उस पर लानत जो चुपके से अपने हमवतन को क़त्ल कर दे।’ सब लोग कहें, ‘आमीन!’


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