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گنتی 30:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 चाहे बीवी ने कुछ देने की मन्नत मानी हो या किसी चीज़ से परहेज़ करने की क़सम खाई हो, उसके शौहर को उस की तसदीक़ या उसे मनसूख़ करने का इख़्तियार है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 اُس کا خَاوند اُس کی مانی ہُوئی کسی بھی مَنّت کو یا قَسم کھا کر پرہیزگاری کے لیٔے اَپنے اُوپر عاید کی ہُوئی کسی بھی پابندی کو قائِم رکھ سَکتا ہے یا منسُوخ کر سَکتا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

13 اُس کی ہر مَنّت کو اور اپنی جان کو دُکھ دینے کی ہر قَسم کو اُس کا شَوہر چاہے تو قائِم رکھّے یا اگر چاہے تو باطِل ٹھہرائے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 چاہے بیوی نے کچھ دینے کی مَنت مانی ہو یا کسی چیز سے پرہیز کرنے کی قَسم کھائی ہو، اُس کے شوہر کو اُس کی تصدیق یا اُسے منسوخ کرنے کا اختیار ہے۔

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گنتی 30:13
13 حوالہ جات  

लेकिन मैं आपको एक और बात से आगाह करना चाहता हूँ। हर मर्द का सर मसीह है जबकि औरत का सर मर्द और मसीह का सर अल्लाह है।


मर्द को औरत के लिए ख़लक़ नहीं किया गया बल्कि औरत को मर्द के लिए।


क्या मुझे इस क़िस्म का रोज़ा पसंद है? क्या यह काफ़ी है कि बंदा अपने आपको कुछ देर के लिए ख़ाकसार बनाकर इंकिसारी का इज़हार करे? कि वह अपने सर को आबी नरसल की तरह झुकाकर टाट और राख में लेट जाए? क्या तुम वाक़ई समझते हो कि यह रोज़ा है, कि ऐसा वक़्त रब को पसंद है?


जब वह बीमार हुए तो मैंने टाट ओढ़कर और रोज़ा रखकर अपनी जान को दुख दिया। काश मेरी दुआ मेरी गोद में वापस आए!


वहीं अहावा की नहर के पास ही मैंने एलान किया कि हम सब रोज़ा रखकर अपने आपको अपने ख़ुदा के सामने पस्त करें और दुआ करें कि वह हमें हमारे बाल-बच्चों और सामान के साथ सलामती से यरूशलम पहुँचाए।


सातवें महीने के दसवें दिन मुक़द्दस इजतिमा के लिए इकट्ठे होना। उस दिन काम न करना और अपनी जान को दुख देना।


यह दिन आराम का ख़ास दिन है जिसमें तुम्हें अपनी जान को दुख देना है। इसे महीने के नवें दिन की शाम से लेकर अगली शाम तक मनाना।”


“सातवें महीने का दसवाँ दिन कफ़्फ़ारा का दिन है। उस दिन मुक़द्दस इजतिमा हो। अपनी जान को दुख देना और रब को जलनेवाली क़ुरबानी पेश करना।


लाज़िम है कि सातवें महीने के दसवें दिन इसराईली और उनके दरमियान रहनेवाले परदेसी अपनी जान को दुख दें और काम न करें। यह उसूल तुम्हारे लिए अबद तक क़ायम रहे।


चुनाँचे एक दूसरे से जुदा न हों सिवाए इसके कि आप दोनों बाहमी रज़ामंदी से एक वक़्त मुक़र्रर कर लें ताकि दुआ के लिए ज़्यादा फ़ुरसत मिल सके। लेकिन इसके बाद आप दुबारा इकट्ठे हो जाएँ ताकि इबलीस आपके बेज़ब्त नफ़स से फ़ायदा उठाकर आपको आज़माइश में न डाले।


लेकिन अगर उसका शौहर उसे ऐसा करने से मना करे तो उस की मन्नत या क़सम मनसूख़ है। वह उसे पूरा करने से बरी है। रब उसे मुआफ़ करेगा, क्योंकि उसके शौहर ने उसे मना किया है।


अगर उसने अपनी बीवी की मन्नत या क़सम के बारे में सुन लिया और अगले दिन तक एतराज़ न किया तो लाज़िम है कि उस की बीवी अपनी हर बात पूरी करे। शौहर ने अगले दिन तक एतराज़ न करने से अपनी बीवी की बात की तसदीक़ की है।


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