मुतअद्दिद लोगों की सरगोशियाँ मेरे कानों तक पहुँचती हैं। वह कहते हैं, “चारों तरफ़ दहशत ही दहशत? यह क्या कह रहा है? उस की रपट लिखवाओ! आओ, हम उस की रिपोर्ट करें।” मेरे तमाम नाम-निहाद दोस्त इस इंतज़ार में हैं कि मैं फिसल जाऊँ। वह कहते हैं, “शायद वह धोका खाकर फँस जाए और हम उस पर ग़ालिब आकर उससे इंतक़ाम ले सकें।”
