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میکاہ 1:3 - किताबे-मुक़द्दस

3 क्योंकि देखो, रब अपनी सुकूनतगाह से निकल रहा है ताकि उतरकर ज़मीन की बुलंदियों पर चले।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

3 دیکھو! یَاہوِہ اَپنی قِیام گاہ سے باہر نکل رہے ہیں؛ وہ نیچے اُترا ہے تاکہ زمین کے اُونچے مقاموں کو پامال کرے۔

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کِتابِ مُقادّس

3 کیونکہ دیکھ خُداوند اپنے مسکن سے باہر آتا ہے اور نازِل ہو کر زمِین کے اُونچے مقاموں کو پایمال کرے گا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

3 کیونکہ دیکھو، رب اپنی سکونت گاہ سے نکل رہا ہے تاکہ اُتر کر زمین کی بلندیوں پر چلے۔

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میکاہ 1:3
15 حوالہ جات  

क्योंकि अल्लाह ही पहाड़ों को तश्कील देता, हवा को ख़लक़ करता और अपने ख़यालात को इनसान पर ज़ाहिर करता है। वही तड़का और अंधेरा पैदा करता और वही ज़मीन की बुलंदियों पर चलता है। उसका नाम ‘रब, लशकरों का ख़ुदा’ है।


क्योंकि देख, रब अपनी सुकूनतगाह से निकलने को है ताकि दुनिया के बाशिंदों को सज़ा दे। तब ज़मीन अपने आप पर बहाया हुआ ख़ून फ़ाश करेगी और अपने मक़तूलों को मज़ीद छुपाए नहीं रखेगी।


उसने उसे रथ पर सवार करके मुल्क की बुलंदियों पर से गुज़रने दिया और उसे खेत का फल खिलाकर उसे चट्टान से शहद और सख़्त पत्थर से ज़ैतून का तेल मुहैया किया।


रब क़ादिरे-मुतलक़ मेरी क़ुव्वत है। वही मुझे हिरनों के-से तेज़रौ पाँव मुहैया करता है, वही मुझे बुलंदियों पर से गुज़रने देता है। दर्जे-बाला गीत मौसीक़ी के राहनुमा के लिए है। इसे मेरे तर्ज़ के तारदार साज़ों के साथ गाना है।


हमारा ख़ुदा तो आसमान पर है, और जो जी चाहे करता है।


तब अल्लाह के रूह ने मुझे वहाँ से उठाया। मैंने अपने पीछे एक गिड़गिड़ाती आवाज़ सुनी : मुबारक हो रब का जलाल अपनी जगह से!


रब का हाथ इस पहाड़ पर ठहरा रहेगा। लेकिन मोआब को वह यों रौंदेगा जिस तरह भूसा गोबर में मिलाने के लिए रौंदा जाता है।


हर मुतकब्बिर पर ग़ौर करके उसे पस्त कर। जहाँ भी बेदीन हो वहीं उसे कुचल दे।


ऐ इसराईल, तू कितना मुबारक है। कौन तेरी मानिंद है, जिसे रब ने बचाया है। वह तेरी मदद की ढाल और तेरी शान की तलवार है। तेरे दुश्मन शिकस्त खाकर तेरी ख़ुशामद करेंगे, और तू उनकी कमरें पाँवों तले कुचलेगा।”


उस दिन उसके पाँव यरूशलम के मशरिक़ में ज़ैतून के पहाड़ पर खड़े होंगे। तब पहाड़ फट जाएगा। उसका एक हिस्सा शिमाल की तरफ़ और दूसरा जुनूब की तरफ़ खिसक जाएगा। बीच में मशरिक़ से मग़रिब की तरफ़ एक बड़ी वादी पैदा हो जाएगी।


क़ादिरे-मुतलक़ रब्बुल-अफ़वाज है। जब वह ज़मीन को छू देता है तो वह लरज़ उठती और उसके तमाम बाशिंदे मातम करने लगते हैं। तब जिस तरह मिसर में दरियाए-नील बरसात के मौसम में सैलाब की सूरत इख़्तियार कर लेता है उसी तरह पूरी ज़मीन उठती, फिर दुबारा उतर जाती है।


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