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متی 6:34 - किताबे-मुक़द्दस

34 इसलिए कल के बारे में फ़िकर करते करते परेशान न हो क्योंकि कल का दिन अपने लिए आप फ़िकर कर लेगा। हर दिन की अपनी मुसीबतें काफ़ी हैं।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

34 پس کل کی فکر نہ کرو، کیونکہ کل کا دِن اَپنی فکر خُود ہی کر لے گا۔ آج کے لیٔے آج ہی کا دُکھ کافی ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

34 پس کل کے لِئے فِکر نہ کرو کیونکہ کل کا دِن اپنے لِئے آپ فِکر کر لے گا۔ آج کے لِئے آج ہی کا دُکھ کافی ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

34 اِس لئے کل کے بارے میں فکر کرتے کرتے پریشان نہ ہو کیونکہ کل کا دن اپنے لئے آپ فکر کر لے گا۔ ہر دن کی اپنی مصیبتیں کافی ہیں۔

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متی 6:34
20 حوالہ جات  

इसलिए मैं तुम्हें बताता हूँ, अपनी ज़िंदगी की ज़रूरियात पूरी करने के लिए परेशान न रहो कि हाय, मैं क्या खाऊँ और क्या पियूँ। और जिस्म के लिए फ़िकरमंद न रहो कि हाय, मैं क्या पहनूँ। क्या ज़िंदगी खाने-पीने से अहम नहीं है? और क्या जिस्म पोशाक से ज़्यादा अहमियत नहीं रखता?


मैं तुम्हारे पास सलामती छोड़े जाता हूँ, अपनी ही सलामती तुमको दे देता हूँ। और मैं इसे यों नहीं देता जिस तरह दुनिया देती है। तुम्हारा दिल न घबराए और न डरे।


मैंने तुमको इसलिए यह बात बताई ताकि तुम मुझमें सलामती पाओ। दुनिया में तुम मुसीबत में फँसे रहते हो। लेकिन हौसला रखो, मैं दुनिया पर ग़ालिब आया हूँ।”


हर रोज़ हमें हमारी रोज़ की रोटी दे।


बल्कि हर सुबह अज़ सरे-नौ हम पर चमक उठती है। ऐ मेरे आक़ा, तेरी वफ़ादारी अज़ीम है।


हमारी रोज़ की रोटी आज हमें दे।


हर जगह उन्होंने शागिर्दों के दिल मज़बूत करके उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की कि वह ईमान में साबितक़दम रहें। उन्होंने कहा, “लाज़िम है कि हम बहुत-सी मुसीबतों में से गुज़रकर अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हों।”


तेरे शहरों के दरवाज़ों के कुंडे लोहे और पीतल के हों, तेरी ताक़त उम्र-भर क़ायम रहे।


क्या तुममें से कोई फ़िकर करते करते अपनी ज़िंदगी में एक लमहे का भी इज़ाफ़ा कर सकता है?


लेकिन ख़ुदावंद ईसा ने जवाब में कहा, “मर्था, मर्था, तू बहुत-सी फ़िकरों और परेशानियों में पड़ गई है।


जब लोग तुमको इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियारवालों के सामने घसीटकर ले जाएंगे तो यह सोचते सोचते परेशान न हो जाना कि मैं किस तरह अपना दिफ़ा करूँ या क्या कहूँ,


फिर ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “इसलिए अपनी ज़िंदगी की ज़रूरियात पूरी करने के लिए परेशान न रहो कि हाय, मैं क्या खाऊँ। और जिस्म के लिए फ़िकरमंद न रहो कि हाय, मैं क्या पहनूँ।


अपनी किसी भी फ़िकर में उलझकर परेशान न हो जाएँ बल्कि हर हालत में दुआ और इल्तिजा करके अपनी दरख़ास्तें अल्लाह के सामने पेश करें। ध्यान रखें कि आप यह शुक्रगुज़ारी की रूह में करें।


अपनी तमाम परेशानियाँ उस पर डाल दें, क्योंकि वह आपकी फ़िकर करता है।


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