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متی 20:12 - किताबे-मुक़द्दस

12 ‘यह आदमी जिन्हें आख़िर में लगाया गया उन्होंने सिर्फ़ एक घंटा काम किया। तो भी आपने उन्हें हमारे बराबर की मज़दूरी दी हालाँकि हमें दिन का पूरा बोझ और धूप की शिद्दत बरदाश्त करनी पड़ी।’

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

12 ’اِن پچھلوں نے صِرف ایک گھنٹہ کام کیا ہے، اَور ہم نے دھوپ میں دِن بھر محنت کی ہے لیکن آپ نے اُنہیں ہمارے برابر کر دیا۔‘

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کِتابِ مُقادّس

12 اِن پچھلوں نے ایک ہی گھنٹہ کام کِیا ہے اور تُو نے اِن کو ہمارے برابر کر دِیا جِنہوں نے دِن بھر کا بوجھ اُٹھایا اور سخت دُھوپ سہی۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

12 ’یہ آدمی جنہیں آخر میں لگایا گیا اُنہوں نے صرف ایک گھنٹا کام کیا۔ توبھی آپ نے اُنہیں ہمارے برابر کی مزدوری دی حالانکہ ہمیں دن کا پورا بوجھ اور دھوپ کی شدت برداشت کرنی پڑی۔‘

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متی 20:12
20 حوالہ جات  

और जब जुनूबी लू चलती है तो तुम कहते हो कि सख़्त गरमी होगी। और ऐसा ही होता है।


जब सूरज तुलू होता है तो उस की झुलसा देनेवाली धूप में पौदा मुरझा जाता, उसका फूल गिर जाता और उस की तमाम ख़ूबसूरती ख़त्म हो जाती है। उस तरह दौलतमंद शख़्स भी काम करते करते मुरझा जाएगा।


और अल्लाह का राज़ यह है कि उस की ख़ुशख़बरी के ज़रीए ग़ैरयहूदी इसराईल के साथ आसमानी बादशाही के वारिस, एक ही बदन के आज़ा और उसी वादे में शरीक हैं जो अल्लाह ने मसीह ईसा में किया है।


अब तक हमें भूक और प्यास सताती है। हम चीथड़ों में मलबूस गोया नंगे फिरते हैं। हमें मुक्के मारे जाते हैं। हमारी कोई मुस्तक़िल रिहाइशगाह नहीं।


क्योंकि अल्लाह एक ही है जो मख़तून और नामख़तून दोनों को ईमान ही से रास्तबाज़ ठहराएगा।


अब हमारा फ़ख़र कहाँ रहा? उसे तो ख़त्म कर दिया गया है। किस शरीअत से? क्या आमाल की शरीअत से? नहीं, बल्कि ईमान की शरीअत से।


इसमें कि तुम कहते हो, ‘अल्लाह की ख़िदमत करना अबस है। क्योंकि रब्बुल-अफ़वाज की हिदायात पर ध्यान देने और मुँह लटकाकर उसके हुज़ूर फिरने से हमें क्या फ़ायदा हुआ है?


तुम शिकायत करते हो, ‘हाय, यह ख़िदमत कितनी तकलीफ़देह है!’ और क़ुरबानी की आग को हिक़ारत की नज़रों से देखते हुए तेज़ करते हो। हर क़िस्म का जानवर पेश किया जाता है, ख़ाह वह ज़ख़मी, लँगड़ा या बीमार क्यों न हो।” रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “क्या मैं तुम्हारे हाथों से ऐसी क़ुरबानियाँ क़बूल कर सकता हूँ? हरगिज़ नहीं!


जब सूरज तुलू हुआ तो अल्लाह ने मशरिक़ से झुलसती लू भेजी। धूप इतनी शदीद थी कि यूनुस ग़श खाने लगा। आख़िरकार वह मरना ही चाहता था। वह बोला, “जीने से बेहतर यही है कि मैं कूच कर जाऊँ।”


इस पर वह ज़मीनदार के ख़िलाफ़ बुड़बुड़ाने लगे,


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