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متی 12:4 - किताबे-मुक़द्दस

4 वह अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और अपने साथियों समेत रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ खाईं, अगरचे उन्हें इसकी इजाज़त नहीं थी बल्कि सिर्फ़ इमामों को?

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

4 حضرت داویؔد خُدا کے گھر میں داخل ہویٔے اَور نذر کی روٹیاں لے کر خُود بھی کھایٔیں اَور اَپنے ساتھیوں کو بھی یہ روٹیاں کھانے کو دیں، جسے کاہِنوں کے سِوائے کسی اَور کو کھانا شَریعت کے مُطابق روا نہیں تھا۔

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کِتابِ مُقادّس

4 وہ کیونکر خُدا کے گھر میں گیا اور نذر کی روٹِیاں کھائِیں جِن کو کھانا نہ اُس کو روا تھا نہ اُس کے ساتِھیوں کو مگر صِرف کاہِنوں کو؟

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

4 وہ اللہ کے گھر میں داخل ہوا اور اپنے ساتھیوں سمیت رب کے لئے مخصوص شدہ روٹیاں کھائیں، اگرچہ اُنہیں اِس کی اجازت نہیں تھی بلکہ صرف اماموں کو؟

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متی 12:4
11 حوالہ جات  

मेज़ पर वह रोटियाँ हर वक़्त मेरे हुज़ूर पड़ी रहें जो मेरे लिए मख़सूस हैं।


मूसा ने उनसे कहा, “गोश्त को मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर उबालकर उसे उन रोटियों के साथ खाना जो मख़सूसियत की क़ुरबानियों की टोकरी में पड़ी हैं। क्योंकि रब ने मुझे यही हुक्म दिया है।


इमाम ने जवाब दिया, “मेरे पास आम रोटी नहीं है। मैं आपको सिर्फ़ रब के लिए मख़सूसशुदा रोटी दे सकता हूँ। शर्त यह है कि आपके आदमी पिछले दिनों में औरतों से हमबिसतर न हुए हों।”


फिर इमाम ने दाऊद को मख़सूसशुदा रोटियाँ दीं यानी वह रोटियाँ जो मुलाक़ात के ख़ैमे में रब के हुज़ूर रखी जाती थीं और उसी दिन ताज़ा रोटियों से तबदील हुई थीं।


ईसा ने जवाब दिया, “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि दाऊद ने क्या किया जब उसे और उसके साथियों को भूक लगी?


या क्या तुमने तौरेत में नहीं पढ़ा कि गो इमाम सबत के दिन बैतुल-मुक़द्दस में ख़िदमत करते हुए आराम करने का हुक्म तोड़ते हैं तो भी वह बेइलज़ाम ठहरते हैं?


उस वक़्त अबियातर इमामे-आज़म था। दाऊद अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ लेकर खाईं, अगरचे सिर्फ़ इमामों को इन्हें खाने की इजाज़त है। और उसने अपने साथियों को भी यह रोटियाँ खिलाईं।”


वह अल्लाह के घर में दाख़िल हुआ और रब के लिए मख़सूसशुदा रोटियाँ लेकर खाईं, अगरचे सिर्फ़ इमामों को इन्हें खाने की इजाज़त है। और उसने अपने साथियों को भी यह रोटियाँ खिलाईं।”


एक ख़ैमा जिसके पहले कमरे में शमादान, मेज़ और उस पर पड़ी मख़सूस की गई रोटियाँ थीं। उसका नाम “मुक़द्दस कमरा” था।


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