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متی 10:15 - किताबे-मुक़द्दस

15 मैं तुम्हें सच बताता हूँ, अदालत के दिन उस शहर की निसबत सदूम और अमूरा के इलाक़े का हाल ज़्यादा क़ाबिले-बरदाश्त होगा।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

15 میں تُم سے سچ کہتا ہُوں کہ عدالت کے دِن اُس شہر کی نِسبت سدُومؔ اَور عمورہؔ کے علاقہ کا حال زِیادہ برداشت کے لائق ہوگا۔

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کِتابِ مُقادّس

15 مَیں تُم سے سچ کہتا ہُوں کہ عدالت کے دِن اُس شہر کی نِسبت سدُوؔم اور عمُورہ کے عِلاقہ کا حال زِیادہ برداشت کے لائِق ہو گا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

15 مَیں تمہیں سچ بتاتا ہوں، عدالت کے دن اُس شہر کی نسبت سدوم اور عمورہ کے علاقے کا حال زیادہ قابلِ برداشت ہو گا۔

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متی 10:15
22 حوالہ جات  

और उसने सदूम और अमूरा के शहरों को मुजरिम क़रार देकर राख कर दिया। यों अल्लाह ने उन्हें इबरत बनाकर दिखाया कि बेदीनों के साथ क्या कुछ किया जाएगा।


इसी तरह मुहब्बत हमारे दरमियान तकमील तक पहुँचती है, और यों हम अदालत के दिन पूरे एतमाद के साथ खड़े हो सकेंगे, क्योंकि जैसे वह है वैसे ही हम भी इस दुनिया में हैं।


और अल्लाह के इसी हुक्म ने मौजूदा आसमान और ज़मीन को आग के लिए महफ़ूज़ कर रखा है, उस दिन के लिए जब बेदीन लोगों की अदालत की जाएगी और वह हलाक हो जाएंगे।


यों ज़ाहिर है कि रब दीनदार लोगों को आज़माइश से बचाना और बेदीनों को अदालत के दिन तक सज़ा के तहत रखना जानता है,


और अगर कोई मक़ाम तुमको क़बूल न करे या तुम्हारी न सुने तो फिर रवाना होते वक़्त अपने पाँवों से गर्द झाड़ दो। यों तुम उनके ख़िलाफ़ गवाही दोगे।”


मैं तुमको बताता हूँ कि क़ियामत के दिन लोगों को बेपरवाई से की गई हर बात का हिसाब देना पड़ेगा।


मैं तुमको सच बताता हूँ, जब तक आसमानो-ज़मीन क़ायम रहेंगे तब तक शरीअत भी क़ायम रहेगी—न उसका कोई हरफ़, न उसका कोई ज़ेर या ज़बर मनसूख़ होगा जब तक सब कुछ पूरा न हो जाए।


अदालत के दिन बहुत-से लोग मुझसे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावंद, ख़ुदावंद! क्या हमने तेरे ही नाम में नबुव्वत नहीं की, तेरे ही नाम से बदरूहें नहीं निकालीं, तेरे ही नाम से मोजिज़े नहीं किए?’


और जिसने मुझे भेजा उस की मरज़ी यह है कि जितने भी उसने मुझे दिए हैं उनमें से मैं एक को भी खो न दूँ बल्कि सबको क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँ।


क्योंकि मेरे बाप की मरज़ी यही है कि जो भी फ़रज़ंद को देखकर उस पर ईमान लाए उसे अबदी ज़िंदगी हासिल हो। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुरदों में से फिर ज़िंदा करूँगा।”


तो भी एक है जो उस की अदालत करता है। जो मुझे रद्द करके मेरी बातें क़बूल नहीं करता मेरा पेश किया गया कलाम ही क़ियामत के दिन उस की अदालत करेगा।


क्योंकि उसने एक दिन मुक़र्रर किया है जब वह इनसाफ़ से दुनिया की अदालत करेगा। और वह यह अदालत एक शख़्स की मारिफ़त करेगा जिसको वह मुतैयिन कर चुका है और जिसकी तसदीक़ उसने इससे की है कि उसने उसे मुरदों में से ज़िंदा कर दिया है।”


लेकिन आख़िर में हर एक का काम ज़ाहिर हो जाएगा। क़ियामत के दिन कुछ पोशीदा नहीं रहेगा बल्कि आग सब कुछ ज़ाहिर कर देगी। वह साबित कर देगी कि हर किसी ने कैसा काम किया है।


लेकिन आप भाइयो तारीकी की गिरिफ़्त में नहीं हैं, इसलिए यह दिन चोर की तरह आप पर ग़ालिब नहीं आना चाहिए।


हम बाहम जमा होने से बाज़ न आएँ, जिस तरह बाज़ की आदत बन गई है। इसके बजाए हम एक दूसरे की हौसलाअफ़्ज़ाई करें, ख़ासकर यह बात मद्दे-नज़र रखकर कि ख़ुदावंद का दिन क़रीब आ रहा है।


उन फ़रिश्तों को याद करें जो उस दायराए-इख़्तियार के अंदर न रहे जो अल्लाह ने उनके लिए मुक़र्रर किया था बल्कि जिन्होंने अपनी रिहाइशगाह को तर्क कर दिया। उन्हें उसने तारीकी में महफ़ूज़ रखा है जहाँ वह अबदी ज़ंजीरों में जकड़े हुए रोज़े-अज़ीम की अदालत का इंतज़ार कर रहे हैं।


सदूम, अमूरा और उनके इर्दगिर्द के शहरों को भी मत भूलना, जिनके बाशिंदे इन फ़रिश्तों की तरह ज़िनाकारी और ग़ैरफ़ितरी सोहबत के पीछे पड़े रहे। यह लोग अबदी आग की सज़ा भुगतते हुए सबके लिए एक इबरतनाक मिसाल हैं।


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