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ملاکی 2:7 - किताबे-मुक़द्दस

7 इमामों का फ़र्ज़ है कि वह सहीह तालीम महफ़ूज़ रखें, और लोगों को उनसे हिदायत हासिल करनी चाहिए। क्योंकि इमाम रब्बुल-अफ़वाज का पैग़ंबर है।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

7 کیونکہ لازِم ہے کہ کاہِنؔ کے لب تعلیم کو محفوظ رکھیں اَور اُس کے مُنہ سے لوگ ہدایت حاصل کریں، کیونکہ وہ قادرمُطلق یَاہوِہ کا پیغمبر ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

7 کیونکہ لازِم ہے کہ کاہِن کے لب معرفت کو محفُوظ رکھّیں اور لوگ اُس کے مُنہ سے شرعی مسائِل پُوچھیں کیونکہ وہ ربُّ الافواج کا رسُول ہے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

7 اماموں کا فرض ہے کہ وہ صحیح تعلیم محفوظ رکھیں، اور لوگوں کو اُن سے ہدایت حاصل کرنی چاہئے۔ کیونکہ امام رب الافواج کا پیغمبر ہے۔

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ملاکی 2:7
37 حوالہ جات  

तुम्हें इसराईलियों को तमाम पाबंदियाँ सिखानी हैं जो मैंने तुम्हें मूसा की मारिफ़त बताई हैं।”


फिर लावी के क़बीले के इमाम क़रीब आएँ। क्योंकि रब तुम्हारे ख़ुदा ने उन्हें चुन लिया है ताकि वह ख़िदमत करें, रब के नाम से बरकत दें और तमाम झगड़ों और हमलों का फ़ैसला करें।


पस हम मसीह के एलची हैं और अल्लाह हमारे वसीले से लोगों को समझाता है। हम मसीह के वास्ते आपसे मिन्नत करते हैं कि अल्लाह की सुलह की पेशकश को क़बूल करें ताकि उस की आपके साथ सुलह हो जाए।


इसलिए जो यह हिदायात रद्द करता है वह इनसान को नहीं बल्कि अल्लाह को रद्द करता है जो आपको अपना मुक़द्दस रूह दे देता है।


वह पौलुस और हमारे पीछे पड़कर चीख़ चीख़कर कहने लगी, “यह आदमी अल्लाह तआला के ख़ादिम हैं जो आपको नजात की राह बताने आए हैं।”


वजह यह थी कि अज़रा ने अपने आपको रब की शरीअत की तफ़तीश करने, उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने और इसराईलियों को उसके अहकाम और हिदायात की तालीम देने के लिए वक़्फ़ किया था।


लावियों ने रब की ख़िदमत करते वक़्त बड़ी समझदारी दिखाई, और हिज़क़ियाह ने इसमें उनकी हौसलाअफ़्ज़ाई की। पूरे हफ़ते के दौरान इसराईली रब को सलामती की क़ुरबानियाँ पेश करके क़ुरबानी का अपना हिस्सा खाते और रब अपने बापदादा के ख़ुदा की तमजीद करते रहे।


ईसा ने दुबारा कहा, “तुम्हारी सलामती हो! जिस तरह बाप ने मुझे भेजा उसी तरह मैं तुमको भेज रहा हूँ।”


मैं तुमको सच बताता हूँ कि जो शख़्स उसे क़बूल करता है जिसे मैंने भेजा है वह मुझे क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह उसे क़बूल करता है जिसने मुझे भेजा है।”


रब्बुल-अफ़वाज जवाब में फ़रमाता है, “देख, मैं अपने पैग़ंबर को भेज देता हूँ जो मेरे आगे आगे चलकर मेरा रास्ता तैयार करेगा। तब जिस रब को तुम तलाश कर रहे हो वह अचानक अपने घर में आ मौजूद होगा। हाँ, अहद का पैग़ंबर जिसकी तुम शिद्दत से आरज़ू करते हो वह आनेवाला है!”


तब रब ने अपने पैग़ंबर हज्जी की मारिफ़त उन्हें यह पैग़ाम दिया, “रब फ़रमाता है, मैं तुम्हारे साथ हूँ।”


यह सुनकर लोग आपस में कहने लगे, “आओ, हम यरमियाह के ख़िलाफ़ मनसूबे बाँधें, क्योंकि उस की बातें सहीह नहीं हैं। न इमाम शरीअत की हिदायत से, न दानिशमंद अच्छे मशवरों से, और न नबी अल्लाह के कलाम से महरूम हो जाएगा। आओ, हम ज़बानी उस पर हमला करें और उस की बातों पर ध्यान न दें, ख़ाह वह कुछ भी क्यों न कहे।”


रब जवाब में फ़रमाता है, “अगर तू मेरे पास वापस आए तो मैं तुझे वापस आने दूँगा, और तू दुबारा मेरे सामने हाज़िर हो सकेगा। और अगर तू फ़ज़ूल बातें न करे बल्कि मेरे लायक़ अलफ़ाज़ बोले तो मेरा तरजुमान होगा। लाज़िम है कि लोग तेरी तरफ़ रुजू करें, लेकिन ख़बरदार, कभी उनकी तरफ़ रुजू न कर!”


मैं ही अपने ख़ादिम का कलाम पूरा होने देता और अपने पैग़ंबरों का मनसूबा तकमील तक पहुँचाता हूँ, मैं ही यरूशलम के बारे में फ़रमाता हूँ, ‘वह दुबारा आबाद हो जाएगा,’ और यहूदाह के शहरों के बारे में, ‘वह नए सिरे से तामीर हो जाएंगे, मैं उनके खंडरात दुबारा खड़े करूँगा।’


अगर कोई वबाई जिल्दी बीमारी तुझे लग जाए तो बड़ी एहतियात से लावी के क़बीले के इमामों की तमाम हिदायात पर अमल करना। जो भी हुक्म मैंने उन्हें दिया उसे पूरा करना।


लेकिन अगरचे मेरी यह हालत आपके लिए आज़माइश का बाइस थी तो भी आपने मुझे हक़ीर न जाना, न मुझे नीच समझा, बल्कि आपने मुझे यों ख़ुशआमदीद कहा जैसा कि मैं अल्लाह का कोई फ़रिश्ता या मसीह ईसा ख़ुद हूँ।


कौन मेरे ख़ादिम जैसा अंधा है? कौन मेरे पैग़ंबर जैसा बहरा है, उस जैसा जिसे मैं भेज रहा हूँ? गो मैंने उसके साथ अहद बाँधा तो भी रब के ख़ादिम जैसा अंधा और नाबीना कोई नहीं है।


रब की मरज़ी जानने के लिए वह इलियज़र इमाम के सामने खड़ा होगा तो इलियज़र रब के सामने ऊरीम और तुम्मीम इस्तेमाल करके उस की मरज़ी दरियाफ़्त करेगा। उसी के हुक्म पर यशुअ और इसराईल की पूरी जमात ख़ैमागाह से निकलेंगे और वापस आएँगे।”


इन जवान इमामों का यह गुनाह रब की नज़र में निहायत संगीन था, क्योंकि वह रब की क़ुरबानियाँ हक़ीर जानते थे।


हिज़क़ियाह ने यरूशलम के बाशिंदों को हुक्म दिया कि अपनी मिलकियत में से इमामों और लावियों को कुछ दें ताकि वह अपना वक़्त रब की शरीअत की तकमील के लिए वक़्फ़ कर सकें।


ऐ अज़रा, जो हिकमत आपके ख़ुदा ने आपको अता की है उसके मुताबिक़ मजिस्ट्रेट और क़ाज़ी मुक़र्रर करें जो आपकी क़ौम के उन लोगों का इनसाफ़ करें जो दरियाए-फ़ुरात के मग़रिब में रहते हैं। जितने भी आपके ख़ुदा के अहकाम जानते हैं वह इसमें शामिल हैं। और जितने इन अहकाम से वाक़िफ़ नहीं हैं उन्हें आपको तालीम देनी है।


फिर तू तमीज़ का दामन थामे रहेगा, और तेरे होंट इल्मो-इरफ़ान महफ़ूज़ रखेंगे।


न इमामों ने पूछा कि रब कहाँ है, न शरीअत को अमल में लानेवाले मुझे जानते थे। क़ौम के गल्लाबान मुझसे बेवफ़ा हुए, और नबी बेफ़ायदा बुतों के पीछे लगकर बाल देवता के पैग़ामात सुनाने लगे।”


आफ़त पर आफ़त ही उन पर आएगी, यके बाद दीगरे बुरी ख़बरें उन तक पहुँचेंगी। वह नबी से रोया मिलने की उम्मीद करेंगे, लेकिन बेफ़ायदा। न इमाम उन्हें शरीअत की तालीम, न बुज़ुर्ग उन्हें मशवरा दे सकेंगे।


क़ौम के समझदार बहुतों को सहीह राह की तालीम देंगे। लेकिन कुछ अरसे के लिए वह तलवार, आग, क़ैद और लूट-मार के बाइस डाँवाँडोल रहेंगे।


अफ़सोस, मेरी क़ौम इसलिए तबाह हो रही है कि वह सहीह इल्म नहीं रखती। और क्या अजब जब तुम इमामों ने यह इल्म रद्द कर दिया है। अब मैं तुम्हें भी रद्द करता हूँ। आइंदा तुम इमाम की ख़िदमत अदा नहीं करोगे। चूँकि तुम अपने ख़ुदा की शरीअत भूल गए हो इसलिए मैं तुम्हारी औलाद को भी भूल जाऊँगा।


उसके नबी गुस्ताख़ और ग़द्दार हैं। उसके इमाम मक़दिस की बेहुरमती और शरीअत से ज़्यादती करते हैं।


जब ऊरियाह को हिदायात मिलीं तो उसने उन्हीं के मुताबिक़ यरूशलम में एक क़ुरबानगाह बनाई। आख़ज़ के दमिश्क़ से वापस आने से पहले पहले उसे तैयार कर लिया गया।


ऊरियाह इमाम ने वैसा ही किया जैसा बादशाह ने उसे हुक्म दिया।


मन्नत न मानना मन्नत मानकर उसे पूरा न करने से बेहतर है।


मुल्क के इमाम मेरी शरीअत से ज़्यादती करके उन चीज़ों की बेहुरमती करते हैं जो मुझे मुक़द्दस हैं। न वह मुक़द्दस और आम चीज़ों में इम्तियाज़ करते, न पाक और नापाक अशया का फ़रक़ सिखाते हैं। नीज़, वह मेरे सबत के दिन अपनी आँखों को बंद रखते हैं ताकि उस की बेहुरमती नज़र न आए। यों उनके दरमियान ही मेरी बेहुरमती की जाती है।


साथ साथ उन्हें रब्बुल-अफ़वाज के घर के इमामों को यह सवाल पेश करना था, “अब हम कई साल से पाँचवें महीने में रोज़ा रखकर रब के घर की तबाही पर मातम करते आए हैं। क्या लाज़िम है कि हम यह दस्तूर आइंदा भी जारी रखें?”


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