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ملاکی 2:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 तुमसे एक और ख़ता भी सरज़द होती है। बेशक रब की क़ुरबानगाह को अपने आँसुओं से तर करो, बेशक रोते और कराहते रहो कि रब न हमारी क़ुरबानियों पर तवज्जुह देता, न उन्हें ख़ुशी से हमारे हाथ से क़बूल करता है। लेकिन यह करने से कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 پھر دُوسرا کام جو تُم کرتے ہو وہ یہ ہے کہ تُم یَاہوِہ کے مذبح کو آنسُوؤں سے تر کر دیتے ہو۔ تُم اِس لیٔے روتے اَور ماتم کرتے ہو کیونکہ اَب یَاہوِہ تمہارے نذرانوں کی طرف مُتوجّہ نہیں ہوتے اَور نہ تمہارے ہاتھوں کے نذرانوں کو خُوشی کے ساتھ قبُول کرتا ہے۔

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کِتابِ مُقادّس

13 پِھر تُمہارے اعمال کے سبب سے خُداوند کے مذبح پر آہ و نالہ اور آنسُوؤں کی اَیسی کثرت ہے کہ وہ نہ تُمہارے ہدیہ کو دیکھے گا اور نہ تُمہارے ہاتھ کی نذر کو خُوشی سے قبُول کرے گا۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 تم سے ایک اَور خطا بھی سرزد ہوتی ہے۔ بےشک رب کی قربان گاہ کو اپنے آنسوؤں سے تر کرو، بےشک روتے اور کراہتے رہو کہ رب نہ ہماری قربانیوں پر توجہ دیتا، نہ اُنہیں خوشی سے ہمارے ہاتھ سے قبول کرتا ہے۔ لیکن یہ کرنے سے کوئی فرق نہیں پڑے گا۔

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ملاکی 2:13
15 حوالہ جات  

गो यह रोज़ा भी रखें तो भी मैं इनकी इल्तिजाओं पर ध्यान नहीं दूँगा। गो यह भस्म होनेवाली और ग़ल्ला की क़ुरबानियाँ पेश भी करें तो भी मैं इनसे ख़ुश नहीं हूँगा बल्कि इन्हें काल, तलवार और बीमारियों से नेस्तो-नाबूद कर दूँगा।”


मुझे सबा के बख़ूर या दूर-दराज़ ममालिक के क़ीमती मसालों की क्या परवा! तुम्हारी भस्म होनेवाली क़ुरबानियाँ मुझे पसंद नहीं, तुम्हारी ज़बह की क़ुरबानियों से मैं लुत्फ़अंदोज़ नहीं होता।”


मैंने एक बार फिर नज़र डाली तो मुझे वह तमाम ज़ुल्म नज़र आया जो सूरज तले होता है। मज़लूमों के आँसू बहते हैं, और तसल्ली देनेवाला कोई नहीं होता। ज़ालिम उनसे ज़्यादती करते हैं, और तसल्ली देनेवाला कोई नहीं होता।


रब बेदीनों की क़ुरबानी से घिन खाता, लेकिन सीधी राह पर चलनेवालों की दुआ से ख़ुश होता है।


मातम करते वक़्त मैंने इस मख़सूसो-मुक़द्दस हिस्से से कुछ नहीं खाया। मैं इसे उठाकर घर से बाहर लाते वक़्त नापाक नहीं था। मैंने इसमें से मुरदों को भी कुछ पेश नहीं किया। मैंने रब अपने ख़ुदा की इताअत करके वह सब कुछ किया है जो तूने मुझे करने को फ़रमाया था।


ख़बरदार, ऐसा मत सोच कि क़र्ज़ मुआफ़ करने का साल क़रीब है, इसलिए मैं उसे कुछ नहीं दूँगा। अगर तू ऐसी शरीर बात अपने दिल में सोचते हुए ज़रूरतमंद भाई को क़र्ज़ देने से इनकार करे और वह रब के सामने तेरी शिकायत करे तो तू क़ुसूरवार ठहरेगा।


बेदीनों की क़ुरबानी क़ाबिले-घिन है, ख़ासकर जब उसे बुरे मक़सद से पेश किया जाए।


ऐ यरमियाह, इस क़ौम के लिए दुआ मत करना! इसके लिए न मिन्नत कर, न समाजत। क्योंकि जब आफ़त उन पर आएगी और वह चिल्लाकर मुझसे फ़रियाद करेंगे तो मैं उनकी नहीं सुनूँगा।


कुछ देर बाद कुछ मर्दो-ख़वातीन मेरे पास आकर अपने यहूदी भाइयों की शिकायत करने लगे।


काश तुममें से कोई मेरे घर के दरवाज़ों को बंद करे ताकि मेरी क़ुरबानगाह पर बेफ़ायदा आग न लगा सको! मैं तुमसे ख़ुश नहीं, और तुम्हारे हाथों से क़ुरबानियाँ मुझे बिलकुल पसंद नहीं।” यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है।


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