12 یَاہوِہ اَیسا کرنے والے شخص کو خواہ وہ کویٔی کیوں نہ ہو، یعقوب کے خیموں سے خارج کر دیں۔ چاہے وہ شخص قادرمُطلق یَاہوِہ کے حُضُور قُربانی کرنے والا ہی کیوں نہ ہو۔
लेकिन हैवान को गिरिफ़्तार किया गया। उसके साथ उस झूटे नबी को भी गिरिफ़्तार किया गया जिसने हैवान की ख़ातिर मोजिज़ाना निशान दिखाए थे। इन मोजिज़ों के वसीले से उसने उनको फ़रेब दिया था जिन्हें हैवान का निशान मिल गया था और जो उसके मुजस्समे को सिजदा करते थे। दोनों को जलती हुई गंधक की शोलाख़ेज़ झील में फेंका गया।
काश तुममें से कोई मेरे घर के दरवाज़ों को बंद करे ताकि मेरी क़ुरबानगाह पर बेफ़ायदा आग न लगा सको! मैं तुमसे ख़ुश नहीं, और तुम्हारे हाथों से क़ुरबानियाँ मुझे बिलकुल पसंद नहीं।” यह रब्बुल-अफ़वाज का फ़रमान है।
जो भस्म होनेवाली और ग़ल्ला की क़ुरबानियाँ तुम मुझे पेश करते हो उन्हें मैं पसंद नहीं करता, जो मोटे-ताज़े बैल तुम मुझे सलामती की क़ुरबानी के तौर पर चढ़ाते हो उन पर मैं नज़र भी नहीं डालना चाहता।
आप इसराईलियों को यह पैग़ाम सुनाने को कहा, ‘रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है कि मेरा घर तुम्हारे नज़दीक पनाहगाह है जिस पर तुम फ़ख़र करते हो। लेकिन यह मक़दिस जो तुम्हारी आँख का तारा और जान का प्यारा है तबाह होनेवाला है। मैं उस की बेहुरमती करने को हूँ। और तुम्हारे जितने बेटे-बेटियाँ यरूशलम में पीछे रह गए थे वह सब तलवार की ज़द में आकर मर जाएंगे।
लेकिन बैल को ज़बह करनेवाला क़ातिल के बराबर और लेले को क़ुरबान करनेवाला कुत्ते की गरदन तोड़नेवाले के बराबर है। ग़ल्ला की नज़र पेश करनेवाला सुअर का ख़ून चढ़ानेवाले से बेहतर नहीं, और बख़ूर जलानेवाला बुतपरस्त की मानिंद है। इन लोगों ने अपनी ग़लत राहों को इख़्तियार किया है, और इनकी जान अपनी घिनौनी चीज़ों से लुत्फ़अंदोज़ होती है।
क्योंकि रब फ़रमाता है, “मुझे इनसाफ़ पसंद है। मैं ग़ारतगरी और कजरवी से नफ़रत रखता हूँ। मैं अपने लोगों को वफ़ादारी से उनका अज्र दूँगा, मैं उनके साथ अबदी अहद बाँधूँगा।
मैंने क़सम खाई है कि एली के घराने का क़ुसूर न ज़बह और न ग़ल्ला की किसी क़ुरबानी से दूर किया जा सकता है बल्कि इसका कफ़्फ़ारा कभी भी नहीं दिया जा सकेगा!”
मैं ख़ुद ऐसे शख़्स के ख़िलाफ़ हो जाऊँगा और उसे उस की क़ौम में से मिटा डालूँगा। क्योंकि अपने बच्चों को मलिक को पेश करने से उसने मेरे मक़दिस को नापाक किया और मेरे नाम को दाग़ लगाया है।
तुम शिकायत करते हो, ‘हाय, यह ख़िदमत कितनी तकलीफ़देह है!’ और क़ुरबानी की आग को हिक़ारत की नज़रों से देखते हुए तेज़ करते हो। हर क़िस्म का जानवर पेश किया जाता है, ख़ाह वह ज़ख़मी, लँगड़ा या बीमार क्यों न हो।” रब्बुल-अफ़वाज फ़रमाता है, “क्या मैं तुम्हारे हाथों से ऐसी क़ुरबानियाँ क़बूल कर सकता हूँ? हरगिज़ नहीं!