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لوقا 20:13 - किताबे-मुक़द्दस

13 बाग़ के मालिक ने कहा, ‘अब मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा, शायद वह उसका लिहाज़ करें।’

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

13 ”تَب انگوری باغ کے مالک نے کہا، ’میں کیا کروں؟ میں اَپنے بیٹے کو بھیجوں گا، جِس سے میں مَحَبّت کرتا ہُوں؛ شاید وہ اُس کا ضروُر اِحترام کریں گے۔‘

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کِتابِ مُقادّس

13 اِس پر تاکِستان کے مالِک نے کہا کہ کیا کرُوں؟ مَیں اپنے پیارے بیٹے کو بھیجُوں گا۔ شاید اُس کا لِحاظ کریں۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

13 باغ کے مالک نے کہا، ’اب مَیں کیا کروں؟ مَیں اپنے پیارے بیٹے کو بھیجوں گا، شاید وہ اُس کا لحاظ کریں۔‘

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لوقا 20:13
19 حوالہ جات  

साथ साथ आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, इससे मैं ख़ुश हूँ।”


शायद वह इल्तिजा करें कि रब उन पर रहम करे। शायद हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आकर वापस आए। क्योंकि जो ग़ज़ब इस क़ौम पर नाज़िल होनेवाला है और जिसका एलान रब कर चुका है वह बहुत सख़्त है।”


शायद यहूदाह के घराने में हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आकर वापस आए अगर उस आफ़त की पूरी ख़बर उन तक पहुँचे जो मैं इस क़ौम पर नाज़िल करने को हूँ। फिर मैं उनकी बेदीनी और गुनाह को मुआफ़ करूँगा।”


लेकिन जब मुक़र्ररा वक़्त आ गया तो अल्लाह ने अपने फ़रज़ंद को भेज दिया। एक औरत से पैदा होकर वह शरीअत के ताबे हुआ


मूसवी शरीअत हमारी पुरानी फ़ितरत की कमज़ोर हालत की वजह से हमें न बचा सकी। इसलिए अल्लाह ने वह कुछ किया जो शरीअत के बस में न था। उसने अपना फ़रज़ंद भेज दिया ताकि वह गुनाहगार का-सा जिस्म इख़्तियार करके हमारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा दे। इस तरह अल्लाह ने पुरानी फ़ितरत में मौजूद गुनाह को मुजरिम ठहराया


अब मैंने देखा है और गवाही देता हूँ कि यह अल्लाह का फ़रज़ंद है।”


फिर बादल से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा चुना हुआ फ़रज़ंद है, इसकी सुनो।”


वह अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकदार बादल आकर उन पर छा गया और बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी, “यह मेरा प्यारा फ़रज़ंद है, जिससे मैं ख़ुश हूँ। इसकी सुनो।”


ऐ इसराईल, मैं तुझे किस तरह छोड़ सकता हूँ? मैं तुझे किस तरह दुश्मन के हवाले कर सकता, किस तरह अदमा की तरह दूसरों के क़ब्ज़े में छोड़ सकता, किस तरह ज़बोईम की तरह तबाह कर सकता हूँ? मेरा इरादा सरासर बदल गया है, मैं तुझ पर शफ़क़त करने के लिए बेचैन हूँ।


“ऐ इसराईल, मैं तेरे साथ क्या करूँ? ऐ यहूदाह, मैं तेरे साथ क्या करूँ? तुम्हारी मुहब्बत सुबह की धुंध जैसी आरिज़ी है। धूप में ओस की तरह वह जल्द ही काफ़ूर हो जाती है।


क्या मैंने बाग़ के लिए हर मुमकिन कोशिश नहीं की थी? क्या मुनासिब नहीं था कि मैं अच्छी फ़सल की उम्मीद रखूँ? क्या वजह है कि सिर्फ़ छोटे और खट्टे अंगूर निकले?


ऐ आदमज़ाद, अब अपना सामान यों लपेट ले जिस तरह तुझे जिलावतन किया जा रहा हो। फिर दिन के वक़्त और उनके देखते देखते घर से रवाना होकर किसी और जगह चला जा। शायद उन्हें समझ आए कि उन्हें जिलावतन होना है, हालाँकि यह क़ौम सरकश है।


उसने कहा, “किसी शहर में एक जज रहता था जो न ख़ुदा का ख़ौफ़ मानता, न किसी इनसान का लिहाज़ करता था।


कुछ देर के लिए जज ने इनकार किया। लेकिन फिर वह दिल में कहने लगा, ‘बेशक मैं ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं मानता, न लोगों की परवा करता हूँ,


फिर मालिक ने तीसरे नौकर को भेज दिया। उसे भी उन्होंने मारकर ज़ख़मी कर दिया और निकाल दिया।


लेकिन मालिक के बेटे को देखकर मुज़ारे आपस में कहने लगे, ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ, हम इसे मार डालें। फिर इसकी मीरास हमारी ही होगी।’


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