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لوقا 10:28 - किताबे-मुक़द्दस

28 ईसा ने कहा, “तूने ठीक जवाब दिया। ऐसा ही कर तो ज़िंदा रहेगा।”

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

28 یِسوعؔ نے اُس سے کہا، ”تُونے ٹھیک جَواب دیا ہے۔ یہی کر تو تُو زندہ رہے گا۔“

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کِتابِ مُقادّس

28 اُس نے اُس سے کہا تُو نے ٹِھیک جواب دِیا۔ یِہی کر تو تُو جِئے گا۔

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28 عیسیٰ نے کہا، ”تُو نے ٹھیک جواب دیا۔ ایسا ہی کر تو زندہ رہے گا۔“

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لوقا 10:28
14 حوالہ جات  

वहाँ मैंने उन्हें अपनी हिदायात दीं, वह अहकाम जिनकी पैरवी करने से इनसान जीता रहता है।


मेरी हिदायात और अहकाम के मुताबिक़ चलना, क्योंकि जो यों करेगा वह जीता रहेगा। मैं रब हूँ।


ईसा ने जवाब दिया, “तू मुझे नेकी के बारे में क्यों पूछ रहा है? सिर्फ़ एक ही नेक है। लेकिन अगर तू अबदी ज़िंदगी में दाख़िल होना चाहता है तो अहकाम के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ार।”


तू उन्हें समझाता रहा ताकि वह दुबारा तेरी शरीअत की तरफ़ रुजू करें, लेकिन वह मग़रूर थे और तेरे अहकाम के ताबे न हुए। उन्होंने तेरी हिदायात की ख़िलाफ़वरज़ी की, हालाँकि इन्हीं पर चलने से इनसान को ज़िंदगी हासिल होती है। लेकिन उन्होंने परवा न की बल्कि अपना मुँह तुझसे फेरकर अड़ गए और सुनने के लिए तैयार न हुए।


ईमान की यह राह शरीअत की राह से बिलकुल फ़रक़ है जो कहती है, “जो यों करेगा वह जीता रहेगा।”


क्योंकि मसीह में शरीअत का मक़सद पूरा हो गया, हाँ वह अंजाम तक पहुँच गई है। चुनाँचे जो भी मसीह पर ईमान रखता है वही रास्तबाज़ ठहरता है।


अब हम जानते हैं कि शरीअत जो कुछ फ़रमाती है उन्हें फ़रमाती है जिनके सुपुर्द वह की गई है। मक़सद यह है कि हर इनसान के बहाने ख़त्म किए जाएँ और तमाम दुनिया अल्लाह के सामने मुजरिम ठहरे।


शमौन ने जवाब दिया, “मेरे ख़याल में वह जिसे ज़्यादा मुआफ़ किया गया।” ईसा ने कहा, “तूने ठीक अंदाज़ा लगाया है।”


जब ईसा ने उसका यह जवाब सुना तो उससे कहा, “तू अल्लाह की बादशाही से दूर नहीं है।” इसके बाद किसी ने भी उससे सवाल पूछने की जुर्रत न की।


लेकिन यह बच्चे भी मुझसे बाग़ी हुए। न उन्होंने मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी, न एहतियात से मेरे अहकाम पर अमल किया, हालाँकि इनसान उनकी पैरवी करने से ही जीता रहता है। उन्होंने मेरे सबत के दिनों की भी बेहुरमती की। यह देखकर मैं अपना ग़ुस्सा उन पर नाज़िल करके उन्हें वहीं रेगिस्तान में तबाह करना चाहता था।


लेकिन रेगिस्तान में भी इसराईली मुझसे बाग़ी हुए। उन्होंने मेरी हिदायात के मुताबिक़ ज़िंदगी न गुज़ारी बल्कि मेरे अहकाम को मुस्तरद कर दिया, हालाँकि इनसान उनकी पैरवी करने से ही जीता रहता है। उन्होंने सबत की भी बड़ी बेहुरमती की। यह देखकर मैं अपना ग़ज़ब उन पर नाज़िल करके उन्हें वहीं रेगिस्तान में हलाक करना चाहता था।


रब हमारे ख़ुदा ही ने हमें कहा कि इन तमाम अहकाम के मुताबिक़ चलो और रब अपने ख़ुदा का ख़ौफ़ मानो। क्योंकि अगर हम ऐसा करें तो फिर हम हमेशा कामयाब और ज़िंदा रहेंगे। और आज तक ऐसा ही रहा है।


जो वफ़ादारी से हुक्म पर अमल करे वह अपनी जान महफ़ूज़ रखता है, लेकिन जो अपनी राहों की परवा न करे वह मर जाएगा।


और मैं मर गया। इस तरह मालूम हुआ कि जिस हुक्म का मक़सद मेरी ज़िंदगी को क़ायम रखना था वही मेरी मौत का बाइस बन गया।


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