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لوقا 1:7 - किताबे-मुक़द्दस

7 लेकिन वह बेऔलाद थे। इलीशिबा के बच्चे पैदा नहीं हो सकते थे। अब वह दोनों बूढ़े हो चुके थे।

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اُردو ہم عصر ترجُمہ

7 لیکن اُن کے اَولاد نہ تھی کیونکہ اِلیشاَبیتؔ بانجھ تھیں اَور دونوں عمر رسیدہ تھے۔

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کِتابِ مُقادّس

7 اور اُن کے اَولاد نہ تھی کیونکہ اِلیشِبَع بانجھ تھی اور دونوں عُمر رسِیدہ تھے۔

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ہولی بائبل کا اردو جیو ورژن

7 لیکن وہ بےاولاد تھے۔ الیشبع کے بچے پیدا نہیں ہو سکتے تھے۔ اب وہ دونوں بوڑھے ہو چکے تھے۔

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لوقا 1:7
16 حوالہ جات  

यह ईमान का काम था कि इब्राहीम बाप बनने के क़ाबिल हो गया, हालाँकि वह बुढ़ापे की वजह से बाप नहीं बन सकता था। इसी तरह सारा भी बच्चे जन्म नहीं दे सकती थी। लेकिन इब्राहीम समझता था कि अल्लाह जिसने वादा किया है वफ़ादार है।


इलक़ाना की दो बीवियाँ थीं। एक का नाम हन्ना था और दूसरी का फ़निन्ना। फ़निन्ना के बच्चे थे, लेकिन हन्ना बेऔलाद थी।


दोनों मियाँ-बीवी बूढ़े हो चुके थे और सारा उस उम्र से गुज़र चुकी थी जिसमें औरतों के बच्चे पैदा होते हैं।


रिबक़ा के बच्चे पैदा न हुए। लेकिन इसहाक़ ने अपनी बीवी के लिए दुआ की तो रब ने उस की सुनी, और रिबक़ा उम्मीद से हुई।


बाद में इलीशा ने जैहाज़ी से बात की, “हम उसके लिए क्या करें?” जैहाज़ी ने जवाब दिया, “एक बात तो है। उसका कोई बेटा नहीं, और उसका शौहर काफ़ी बूढ़ा है।”


इब्राहीम मुँह के बल गिर गया। लेकिन दिल ही दिल में वह हँस पड़ा और सोचा, “यह किस तरह हो सकता है? मैं तो 100 साल का हूँ। ऐसे आदमी के हाँ बच्चा किस तरह पैदा हो सकता है? और सारा जैसी उम्ररसीदा औरत के बच्चा किस तरह पैदा हो सकता है? उस की उम्र तो 90 साल है।”


और इब्राहीम का ईमान कमज़ोर न पड़ा, हालाँकि उसे मालूम था कि मैं तक़रीबन सौ साल का हूँ और मेरा और सारा के बदन गोया मुरदा हैं, अब बच्चे पैदा करने की उम्र सारा के लिए गुज़र चुकी है।


दाऊद बादशाह बहुत बूढ़ा हो चुका था। उसे हमेशा सर्दी लगती थी, और उस पर मज़ीद बिस्तर डालने से कोई फ़ायदा न होता था।


लेकिन राख़िल बेऔलाद ही रही, इसलिए वह अपनी बहन से हसद करने लगी। उसने याक़ूब से कहा, “मुझे भी औलाद दें वरना मैं मर जाऊँगी।”


यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में एक इमाम था जिसका नाम ज़करियाह था। बैतुल-मुक़द्दस में इमामों के मुख़्तलिफ़ गुरोह ख़िदमत सरंजाम देते थे, और ज़करियाह का ताल्लुक़ अबियाह के गुरोह से था। उस की बीवी इमामे-आज़म हारून की नसल से थी और उसका नाम इलीशिबा था।


मियाँ-बीवी अल्लाह के नज़दीक रास्तबाज़ थे और रब के तमाम अहकाम और हिदायात के मुताबिक़ बेइलज़ाम ज़िंदगी गुज़ारते थे।


एक दिन बैतुल-मुक़द्दस मैं अबियाह के गुरोह की बारी थी और ज़करियाह अल्लाह के हुज़ूर अपनी ख़िदमत सरंजाम दे रहा था।


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